संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने दिल्ली हाई कोर्ट को बताया कि वह सिविल सेवा की परीक्षा में आवेदन के वास्ते ट्रांसजेंडरों को तीसरे लिंग के रूप में शामिल नहीं कर सकता क्योंकि यह कैटिगरी सुप्रीम कोर्ट द्वारा अबतक स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं की गई है।
केंद्र सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता और न्यायमूर्ति पी एस तेजी की बेंच से कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा इस मुद्दे को स्पष्ट किए जाने के बाद वह ट्रांसजेंडरों के लाभ के लिए नियमावली तैयार कर सकता है, जिसमें उन्हें आरक्षण प्रदान करना शामिल है। केंद्र ने कहा कि वह विभिन्न मुद्दों पर स्पष्टीकरण की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है, जिनमें ट्रांसजेंडरों की पहचान और उन्हें तीसरे लिंग के रूप में कौन प्रमाणित करेगा जैसी बातें शामिल हैं। यूपीएससी और कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने बेंच के समक्ष दायर अपने हलफनामों में ये बातें कही हैं। हाई कोर्ट ने कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा स्पष्टीकरण संबंधी केंद्र के आवेदन पर विचार किए जाने के बाद वह इस मामले की सुनवाई करेगा।
दिल्ली हाई कोर्ट में दायर एक जनहित याचिका में लिंग या लिंग योग्यता मापदंड तय होने तक सिविल सर्विस की परीक्षा को लेकर यूपीएससी का नोटिस खारिज करने की मांग की गई है। इस याचिका पर अब अगली सुनवाई 27 जुलाई को होगी। याचिका में दलील दी गई है कि तीसरे लिंग के विकल्प के अभाव से ट्रांसजेंडर परीक्षा के लिए आवेदन भरने के अयोग्य हो गए हैं। परीक्षा 23 अगस्त को होने वाली है।