भारत की विख्यात दवा कम्पनी रैनबैक्सी को सन फर्मा ने खरीद लिया है. ऐसे समय में जब रैनबैक्सी बीते दिनों की बात हो जायेगी आइए जानें रैनबैक्सी के उद्भव और विकास की कहानी.
रैनबैक्सी की शुरूआत 1937 में पंजाब के रणबीर सिंह और गुरुबक्स सिंह ने की थी. तब यह कम्पनी दवा निर्माण का काम नहीं करती थी बल्कि यह एक वितरक कम्पनी के रूप में थी जो जापानी कम्पनी शियोनोगी की दवाओं का वितरण करती थी. रैनबैक्सी का नामाकरण इसके दोनों संस्थापकों- रणबीरऔर गुरुबक्स के नामों के एक एक हिस्से (Ran+Bax) को जोड़ कर किया गया था.
1952 में रणबीर और गुरबक्स के चचेरे भाई ने इस कम्पनी को खरीद लिया. 1967 आते आते मोहन सिंह के बेटे परमिंदर सिंह इससे जुड़े और इसके बाद इस कम्पनी ने दवा निर्माण के क्षेत्र में भारत में काफी नाम कमाया. और आज की तारीख में खुद रैनबैक्सी के दावे के अनुसार वह देश की सबसे बड़ी दवा निर्माता कम्पनी है.
1998 में रैनबैक्सी ने दवा क्षेत्र के सबसे बड़े बाजार अमेरिका में प्रवेश किया. 2005 आते आते इस कम्पनी का ग्लोबल मार्केट शेयर का 28 प्रतिशत अमेरिका से आने लगा जबकि युरोप, ब्राजील, रूस और चीन आदि बाजारों को मिला कर इसकी कुल बिक्री का 75 प्रतिशत हिस्सा इन देशों से आने लगा था. फिलहाल रैनबैक्सी के उत्पाद विश्व के 125 देशों में निर्यात होते हैं जबकि आठ देशो में इसके उत्पादों की निर्माण इकाई मौजूद है.
लेकिन पिछले कुछ समय से मुश्किलों में चल रही थी. और अब यह सन फार्मा के हाथों बिक गयी है. खबर है कि औषधि कंपनी सनफार्मा, रैनबैक्सी प्रयोगशालाओं का अधिग्रहण करेगी. यह अधिग्रहण शेयरों के आधार पर होगा जिसका मूल्य 3.2 अरब डॉलर है.
सन फार्मा, रैनबैक्सी की 100 फीसदी हिस्सेदारी खरीदेगी, वहीं 457 रुपये प्रति शेयर के भाव पर 400 करोड़ डॉलर में यह सौदा हुआ है. सभी मंजूरियों के बाद यह सौदा दिसबंर 2014 तक पूरा होगा. रैनबैक्सी के शेयरधारकों को 10 शेयर के बदले सन फार्मा के 8 शेयर मिलेंगे. इस सौदे के बाद अमेरिका में सन फार्मा सबसे बड़ी दवा कंपनी बन जाएगी. वहीं रैनबैक्सी को खरीदने के बाद, सन फार्मा दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी जेनेरिक कंपनी होगी.