बिहार में मोकामा स्थित राजेंद्र सेतु के भारी वाहनों के लिए बंद किये जाने से शादी के इस मौसम में लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. छह महीने में मरम्मत कर लेने का रेलवे का दावा फ्लॉब साबित हुआ है.
दीपक मंडल, मोकामा से
इस जर्जर पुल को पिछले साल अक्टूबर में यह कहते हुए भारी वाहनों के लिए बंद कर दिया गया था कि छह महीने में मरम्मत के बाद इसे चालू कर दिया जायगा. लेकिन आठ माह बीत जाने के बाद भी इसका काम अधूरा है और पूर्वी बिहार के लोगों को बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
आठ फीट की ऊँचाई पर लोहे की बैरीकेडिंग लगाकर भारी वाहनों के आवागमन के लिए पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया,इस सेतु के जर्जर हालात के मद्देनजर जिला प्रशासन एवं रेलवे के अधिकारियों ने इसे मरम्मती कार्य तक बंद कर देने का निर्णय लिया है ,इस कारण हाथिदह और सिमरिया स्थित पुल के दोनों किनारों पर लोहे का मजबूत बैरीकेडिंग रेलवे के अधिकारीयों ने लगवाया है ,उल्लेखनीय है की यह पुल रेलवे के क्षेत्राधिकार में आता है एवं इसकी देख रेख रेलवे ही करती रही है.
एक जमाने में राजेंद्र पुल बिहार के सबसे मजूबत पुलों में शुमार किया जाता था. लेकिन आज इसकी हालत इतनी दयनीय है कि मरम्मत की कोशिशें भी अभी तक कामयाब नहीं हुई हैं. और न ही इस मामले में कोई अधिकारी जुबान खोलना चाहता है.
इतिहास
राजेंद्र पुल का उदघाटन 1959 में हुआ था। इसका डिजाइन अभियंता एम विश्वेश्वरैया ने किया था. पुल का शिलान्यास 1955 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद और उदघाटन 1959 में प्रधानमंत्री रहते हुए पंडित जवाहरलाल नेहरू ने किया था.
इस पुल के निर्माण में बिहार के पहले मुख्यमंत्री डॉ श्रीकृष्ण सिंह की अहम भूमिका थी. पिछले चार वषो से पुल की कई बार मरम्मत होने के बावजूद भी कई माह से पुल पर भारी वाहनों परिचालन बाधित है रेलवे अौर सडक की देख रेख जिम्मेदारी रेलवे की है रेलवे वालों का कहना है की रेल पुल के ऊपरी भाग मे बना सडक पुल के कई क्रास गाटर कमजोर होगया है वैवाहिक मौसम के कारण पुल पर वाहन का परिचालन रेंगती नजर आती है.
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