व्यापक जनाधार का नेता नहीं होने के बावजूद नीतीश कुमार कलकुलेशन में महारत रखते हैं. जब सहयोगी सशक्त हो तो नीतीश खुद किनारा पकड़ने की राह अपनाते हैं और सहयोगी कमजोर हो तो सबको किनारे लगाने का हुनर भी उन्हें आता है.
इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम
एक तिनका भी खड़-खड़ाये तो मीडिया के कुछ बंधु ग्रैंड अलायंस टूटने की घोषणा कर देते हैं. गिन रहा हूं कि पिछले 18 महीनों में इन साथियों ने 6 बार महागठबंधन तोड़ दिया है.
औसतन तीन महीने में एक बार. मई में तो महागठबंन को इन साथियों ने दो बार तोड़ डाला. एक- लालू परिवार पर कथित इंकमटैक्स छापों के वक्त और दूसरा- राष्ट्रपति चुनाव पर विपक्षी दलों के मंथन में नीतीश के शामिल न होने के फैसले पर.
तमाम छह बार गठबंधन टूटने का ऐलान नीतीश कुमार के रवैये और व्यवहार के आकलन पर भाजपा के हमदर्द पत्रकारों ने गठबंधन टूटने का ऐलान किया.
नीतीश को समझना ठाठा नहीं है. मौजूदा युग के सबसे जटिल नेता हैं नतीश.
नीतीश मीडिया के इस रवैये पर खूब लुत्फ लेते होंगे. सुबह के अखबार पढ़ते हुए, काली चाय की सोंधी खुश्बुओं की चुस्कियों के साथ मुस्कराते हुए.
तभी तो दिल्ली से ले कर बिहार तक के भाजपाई लार टपका-टपका के बेचैन हो उठते हैं.
सुनो साथियों. नीतीश कुमार ने जिस मोदीयुग के खिलाफ एनडीए छोड़ा, वह युग अभी जारी है. गोया नीतीश के लिए स्पेस नहीं है वहां. पर यह भी याद रखिये कि नीतीश की पॉलिट्कस का अपना अंदाज है. वह भाजपाइयों को लार टपकाते हुए देख कर आनंदित होते हैं तो राजद को भभकी दे दे कर गठबंधन को अपनी गिरफ्त में रखना चाहते हैं.
वैसे मान लिया जाये कि नीतीश ने गठबंधन के राष्ट्रपति प्रत्याशी का समर्थन न भी किया तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा. एनडीए में रहते हुए नीतीश ने कांग्रेस के उम्मीदवार प्रणव मुखर्जी का समर्थन किया था. एनडीए तब कहा टूटा.
यह नीतीश का पॉलिटकल स्टाइल है. वह बड़े जनाधार के नेता तो नहीं है पर कलकुलेशन के महारथी जरूर हैं. एनडीए में रहते हुए बिहार के मुख्यमंत्री के बतौर उन्होंने पूरी भाजपा को नाक में दम किये रखा. उदाहरण याद कीजिए- भाजपा का कौन नेता( नरेंद्र मोदी पढिये) बिहार नहीं आयेगा, यह नीतीश की इजाजत के बिना संभव नहीं था. भाजपा तब भी राष्ट्रीय पार्टी थी, जबकि नीतीश क्षेत्रीय दल के नेता थे. जब नीतीश ने महसूस कर लिया कि भाजपा उनके बस से बाहर जा रही है तो भाजपाइयों को सलाम कह डाला. केवल सलाम ही नहीं किया, बल्कि सुशील मोदी जैसे मंत्रियों को सार्वजनिक रूप से सरकार से बेदखल भी किया था.
दर असल नीतीश चीजों को अपने नियंत्रण में रखने के लिए अपने पत्ते चलते हैं. कोशिश करते हैं कि वह अपनी महत्वकांक्षा को खुद प्रकट ना करें. बस हालात ऐसे बना दें कि बाकी लोग बेबस हो कर उनको स्वीकार कर लें. आने वाले दिनों में महागठबंधन का विस्तार होना है. तब प्रधान मंत्री पद के कंडिडेट की खोज की जायेगी. दावेदार कई होंगे. संभव है नीतीश इसी अनुरूप अपने पत्ते चल रहे हैं. बस देखना दिलचस्प होगा कि 2019 तक क्या क्या खेल होता है.