“लहर-लहर फ़हर फ़हर डोलता है/ तिरंगा बोलता है”, “सबा अरब हम राम-कृष्ण/ हम हीं राणा कहलाते/ फ़िरभी रोज तिरंगे को वे चूहे कुतर-कुतर कर खाते” आदि पंक्तियों से आज साहित्य सम्मेलन गुंजता रहा। अवसर था भारत के 67वें गणतंत्र-दिवस पर आयोजित राष्टीय-गीत उत्सव का।
गीतोत्सव का आरंभ गीत के वरिष्ठ कवि राज कुमार प्रेमी के इस मातृ-भूमि-वंदना से हुआ कि, “कितना सुंदर कितना न्यारा प्यारा हिन्दुस्तान / जान से भी प्यारा अपाना भारत देश महान”। कवि जय प्रकाश पुजारी का सस्वर पढा गया यह गीत बहुत उल्लास के साथ सुना गया कि, “लहर-लहर फ़हर फ़हर डोलता है/ तिरंगा बोलता है”।
कवि र्योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने अपने गीत में, भारतीय समाज में उठ रहे प्रश्नों को इस प्रकार रखा कि, “जीवन का हर हिस्सा क्या हुआ नही परतंत्र? / क्या रह सके हम स्वतंत्र ? क्या है आज कहीं गणतंत्र?” , तो कवि कमलेन्द्र झा कमल ने अपनी व्यथा इस तरह व्यक्त की कि, “ जब एक अकेली दुर्गा माता महिषासुर का वध कर जाती/ परशुराम की प्रखर-धार सबको है अपनी चमक दिखाती/ सबा अरब हम राम-कृष्ण हम ही अशोक राणा-कहलाते/ फ़िर भी रोज तिरंगे को वे चूहे कुतर-कुतर के खाते”।
पं शिवदत्त मिश्र, शंकर शरण मधुकर तथा कुमारी मेनका ने भी राष्ट्र-भक्ति गीतों से सुधी श्रोताओं की तालियां बटोरीं।
इसके पूर्व सम्मेलन-अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने सम्मेलन परिसर में राष्ट्रीय-ध्वज का आरोहण किया। इस अवसर पर उन्होंने राष्ट्र-पिता महात्मा गांधी, देश के प्रथम राष्ट्रपति डा राजेन्द्र प्रसाद, प्रथम प्रधानमंत्री पं जवाहर लाल नेहरु, सरदार बल्लभ भाई पटेल, सुभाष चन्द्र बोस, भगत, चंद्रशेखर और बिस्मिल आदि देश-भक्त वलिदानी स्वतंत्रता सेनानियों के साथ रामवृक्ष बेनीपुरी, पं छविनाथ पाण्डेय, डा लक्ष्मी नारायण सुधांशु और पं राम दयाल पाण्डेय जैसे साहित्य सेवियों को भी श्रद्धापूर्वक स्मरण किया जिन्होंने केवल कलम से हीं नही बल्कि तन-मन-धन से स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था और भांति-भांति से वलिदान दिये थे। उन्होनें बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन और सम्मेलन से जुड़े साहित्यकारों द्वारा स्वतंत्रा-सग्राम में दिये गये अवदानों की विस्तार से चर्चा की।
इस अवसर पर सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेन्द्र नाथ गुप्त, वरिष्ठ शायर आरपी घायल, कमाल कोलुआपुरी, अंबरीष कान्त, पवन मिश्र, कृष्णरंजन सिंह, प्रो सुशील झा, अमरेन्द्र कुमार, हरेन्द्र चतुर्वेदी, अभय सिन्हा, विनायक पाण्डेय, कृष्ण कन्हैया, नरेन्द्र देव आदि बड़ी संख्या में सम्मेलन के अधिकारी व साहित्यकार उपस्थित थे।