महागठबंधन के कार्यकर्ताओं का उत्‍साह उफान पर है। सबको उम्‍मीद है कि दीपावली के बाद निगम, बोर्ड और आयोगों के रिक्‍त पड़े पदों पर नियुक्ति होगी। राजद, जदयू और कांग्रेस का हर कार्यकर्ता, जो थोड़ा सक्रिय है, आयोगों में नियुक्ति की दौड़ में शामिल है। हर कोई अपने-अपने ढंग से अपना कील-कांटा ठीक कर रहा है।ashok

वीरेंद्र यादव

 

आयोगों में नियुक्ति के लिए पूर्व सांसद, पूर्व विधायक, पूर्व एमएलसी से लेकर आयोगों के भूतपूर्व सदस्‍य भी रेस लगा रहे हैं। बिहार सरकार के कई पूर्व मंत्री भी दौड़ में शामिल हैं। वर्तमान सांसद, विधायक या विधान पार्षद ही इस दौड़ में शामिल नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि ये सत्‍ता से तृप्‍त हैं। ये लोग भी अपनी पत्‍नी, बेटा, पतोहू के लिए दरबारों में हाजिरी लगा रहे हैं।

 

दस, 7 और 2 नंबर के दरवाजे पर जलवा

अभी पटना में तीन दरबार सज रहे हैं और रौनक छाया हुआ है। पहला है 10 नंबर सर्कुलर रोड (लालू यादव का आवास), 7 नंबर स्‍ट्रैंड रोड (आरसीपी सिंह का आवास) और 2 नंबर पोलो रोड (अशोक चौधरी का आवास)। इन आवासों के दरवाजे के बाहर दिन भर प्रत्‍याशियों की भीड़ लगी रहती है। यदि ‘साहब’ आवास पर हैं तो रोड पर दरबार जमा रहता है। इसके अलावा जदयू के प्रदेश अध्‍यक्ष वशिष्‍ठ नारायण सिंह का आवास, राजद विधायक भोला यादव के आवास समेत कई अन्‍य छोटे-छोटे दरबार हैं, जो सीधे सत्‍ता केंद्र से जुड़े हैं, वहां भी भीड़ लगी रहती है।

 

हर कोई टटोल रहा संभावना

दरबारों के बाहर पहुंचने वाले प्रत्‍याशियों के हाथों में मिठाई का पैकेट और आकर्षक ढंग से बनाया गया बायोडाटा दोनों साथ-साथ साहबों के सामने प्रस्‍तुत किये जा रहे हैं। मिठाई दीपावली की शुभकामनाओं के साथ आगे बढ़ाया जाता है और थोड़ा ‘सरमाते’ हुए बायोडाटा भी थमा दिया जाता है। साहब का अपने-अपने ढंग का रिस्‍पॉस। एक दिन हम भी एक दरबार में पहुंच गए। साइकिल दरवाजे पर लगाकर दरबार में गए। हम अपनी अपेक्षा छुपा नहीं पाए। हमने भी लालबत्‍ती की संभावना टटोलने की कोशिश की। उन्‍होंने साफ शब्‍दों में कहा कि हमने दूसरे की पैरवी कर दी है, आपकी पैरवी अब नहीं कर सकते हैं। कोई और पैरवीकार तलाशिए।

 

नहीं थम रही उम्‍मीदों की बाढ़

दरबारों के बाहर खड़े लोगों के बीच चर्चा का विषय एक ही होता है- कब बंटेगी लाल बत्‍ती। किस पार्टी के खाते में कौन-सी सीट जाएगी। सबका अपना-अपना अनुमान, अपना-अपना दावा। अधिकांश प्रत्‍याशी महंगी गाडि़यों पर सवार होकर झकास कुर्ता, पैजामा और ब्रांडेड जूते पहनकर हाजिरी लगा रहे हैं। गाड़ी से उतरने का स्‍टाइल भी एकदम जुदा। चाल निराली। कई प्रत्‍याशी मिठाई ढोने के लिए अलग सहयोगी रखे रहते हैं। सहयोगी दरबार में घुसने के दौरान पैकेट थमा पर लौट आता है। दरबार से निकलने वाले हर व्‍यक्ति के चेहरे पर एक ही भाव। दरबार के बाहर का नजारा अभी पर्यटक स्‍थल से ज्‍यादा सुकून देता है। किसके भाग्य से आयोग का छींका टूटता है, अभी तय नहीं है। लेकिन उम्‍मीदों की बाढ़ अभी थमती नजर नहीं आ रही है।

By Editor


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