आप बेशक पंजाब और गुजरात में पॉलिटिक्स कीजिए. आपके लोग वहां दलितों को लुभाने की पॉलिटिक्स कर भी रहे हैं. लेकिन ईमानदारी नाम की भी तो एक चीज होती है.
दिलीप मंडल
अरविंद केजरीवाल जी,
क्या आप जानते हैं कि दिल्ली में मरे जानवर कौन उठाता है? मिसाल के तौर पर आपके घर का कुत्ता मर गया तो उसे कौन उठाएगा? आपकी कोठी का जाम सीवर कौन साफ करता है? दिल्ली में लाखों गाय हैं. मरती भी हैं. कौन साफ करता है?
मैं बताता हूं.
दिल्ली सरकार या स्थानीय निकाय में ठेके पर काम कर रहा एक मजदूर, जिसे हर महीने सात से आठ हजार मिलते हैं. वह दलित होगा.
आपने सरकार बनाते समय ठेके पर रखे लोगों को पर्मानेंट करने का वादा किया था… अभी तक एक भी आदमी पर्मानेंट नहीं हुआ है. आप बता सकते हैं कि आपने अपना वादा पूरा क्यों नहीं किया. इनके धरना-प्रदर्शन करने पर आपने रोक लगा दी है.
पहले दिल्ली सरकार के सफाई कर्मचारी पर्मानेंट होते थे. वे बेशक गंदा काम करते थे, पर उनके बच्चे पढ़-लिख लेते थे. वे मिडिल क्लास के लोग होते थे.
आप की सरकार बनने के बाद एक भी पर्मानेंट सफाई कर्मचारी नहीं रखा गया है. आप ने किसी टेंपररी को पर्मानेंट नहीं किया… प्लीज बताइए कि मेरे पास गलत सूचना है.
प्रति माह पैंतीस हजार की पक्की नौकरी वाले काम को आप सात से आठ हजार रुपए में करवा रहे हैं.
दिल्ली सरकार के स्कूलों, कॉलेजों, अस्पतालों, ऑफिसों में हर जगह सफाई का काम ठेके पर हो रहा है.
दिल्ली भूगोल के लिहाज से छोटा राज्य है. आप सौ क्रेन और जेसीबी लगा दें तो मृत पशु के निस्तारण का काम मशीनी तरीके से हो सकता है. सीवर लाइन मशीन से साफ हो सकती है. आपको कौन रोक रहा है?
इससे दस गुना खर्च तो आप विज्ञापनों पर कर देते हैं. इसलिए बात खर्च की भी नहीं है.
क्या केंद्र सरकार आपको सफाई कर्मचारियों को पर्मानेंट करने या पशु उठाने के लिए क्रेन लगाने या मशीन से सीवर साफ करने से रोक रही है?
आपको कौन रोक रहा है? कहीं वह आप ही तो नहीं हैं.
आप बेशक पंजाब और गुजरात में पॉलिटिक्स कीजिए. आपके लोग वहां दलितों को लुभाने की पॉलिटिक्स कर भी रहे हैं. लेकिन ईमानदारी नाम की भी तो एक चीज होती है. अपने आप से पूछ कर देखिए कि क्या आप ईमानदार हैं.
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