बिहार में राज्यसभा की दो सीटों के लिए हो रहा उपचुनाव रोचक मोड़ पर पहुंच गया है। उम्मीदवार पीछे हो गए हैं और उनके समर्थक मोर्चा संभाल रहे हैं। दोनों ओर से जीत के लिए पर्याप्त संख्या बल जुटाने का जतन हो रहा है.
वीरेंद्र यादव
इसमें जदयू और विक्षुब्धों के बीच शह-मात का खेल जारी है।
चुनाव प्रक्रिया और वोटों के गणित का विश्लेषण करें तो स्पष्ट हो रहा है कि इस चुनाव में वोटों की संख्या का नहीं, विधायकों के विश्वास का संकट है। जदयू विधायकों की पलटी चाल से दोनों खेमा सशंकित है।
अब आस्था और विश्वास बदलने का दौर भी शुरु हो गया है। 13 जून को पथ निर्माण मंत्री ललन सिंह ने लालू यादव की तारीफ की और कहा कि लालू यादव सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ते रहे हैं।
यह वही ललन सिंह हैं, जिन्होंने चारा घोटाले की प्राथमिकी दर्ज करायी और लालू यादव को राजनीतिक रूप से बर्बाद करने में पूरी शक्ति लगा दी। 14 जून को नीतीश कुमार ने भी लालू यादव को फोन किया और राज्यसभा उपचुनाव में जदयू उम्मीदवारों के लिए समर्थन मांगा। मंगलवार को भी उन्होंने लालू प्रसाद से दुबारा समर्थन मांगा।
जीतन राम मांझी सरकार के विश्वास प्रस्ताव का राजद ने समर्थन किया था। राजद विधायक दल के नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी ने कहा था कि नीतीश कुमार ने एक महादलित को मुख्यमंत्री बनाया है। इसलिए इस सरकार का हम समर्थन करते हैं। लेकिन मुख्यमंत्री ने खुद ही राजद के समर्थन का मजाक उड़ाया। मुख्यमंत्री श्री मांझी ने विश्वास प्रस्ताव पर सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि हमें राजद के समर्थन की जरूरत नहीं थी। हमारे पास अपना पर्याप्त बहुमत है। फिर भी राजद ने समर्थन दिया तो उनका हम धन्यवाद करते हैं।
उपचुनाव में भाजपा की रणनीति को लेकर ही कम विश्वास का संकट नहीं है। नामांकन के पूर्व निर्दलीय तीनों उम्मीदवार अनिल शर्मा, साबिर अली और दिलीप जयसवाल भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी के सरकारी आवास पर जाते हैं और उनसे मुलाकात कर विधानसभा पहुंचते हैं। तीनों एक साथ नामांकन भी करते हैं। तीन में से एक उम्मीदवार दिलीप जयसवाल के प्रस्तावक भी भाजपा के विधायक थे। हालांकि बाद में दिलीप जयसवााल ने अपना पर्चा वापस ले लिया।
उपचुनाव में एक सीट पर जदयू के पवन कुमार वर्मा और निर्दलीय अनिल शर्मा और दूसरी सीट पर जदयू के गुलाम रसूल औेर निर्दलीय साबिर अली मैदान में हैं। अब सबकी नजर 19 जून को होने वाले मतदान पर टिक गयी है। कांग्रेस और सीपीआई ने जदयू उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान करने की घोषणा की है। भाजपा व राजद ने अभी अपनी मुट्ठी बांध रखी है, जबकि तीन निर्दलीय उम्मीदवार भी हवा का रुख पहचनाने में जुट गए हैं।
तीन मुख्य खेमा जदयू, राजद और भाजपा में बैठकों का दौर जारी है। जदयू विधायक दल की बैठक में पार्टी उम्मीदवारों को जितवाने का संकल्प लिया गया तो राजद कल अपनी बैठक में कोई भी फैसला लेने के लिए लालू को अधिकृत कर दिया. राजद विधायक दल की आज फिर बैठक हो रही है। आज भाजपा की भी बैठक हो रही है। राजद व भाजपा एक-दूसरे की रणनीति का इंतजार कर रहे हैं।
इस बीच जदयू की निलंबित विधायक रेणु कुशवाहा और अन्नू शुक्ला ने नीतीश कुमार व पार्टी में आस्था जतायी है।
ऐसे माहौल में हार और जीत वोटों की संख्या पर निर्भर करेगा, जबकि असली अग्नि परीक्षा विश्वास की होनी है। वर्षों के दुश्मन और दोस्त की आस्था बदलेगी या दरकेगी, पार्टियों की नीति और सिद्धांत की कीमत लगेगी या विधायकों के विश्वास पर सवाल खड़े होंगे? यह सब मतदान के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा। पर इतना तय है कि इस चुनाव में संकट संख्या का नहीं, विश्वास का है। लोकतांत्रिक मर्यादाओं की सुरक्षा का है। वोटों को बाजारू बनने से बचाने का भी है।