शहाबुद्दीन के दोबारा जेल जाने पर उनके समर्थकों में जबर्दस्त उबाल है. सवाल पूछा जा रहा है कि प्रशांत भूषण को शहाबुद्दीन के खिलाफ किसने अदालत भेजा और राम जेठमलानी ने किसके मना करने से उनके पक्ष में बहस नहीं की.
सोशल मीडिया में इस सवाल खूब बहस हो रही है. कई लोगों का आरोप है कि नीतीश कुमार के इशारे पर प्रशांत भूषण को खड़ा कर शहाबुद्दीन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में भेजा गया.
साहिल सिद्दीकी ने इस संबंध में एक लम्बी टिप्पणी फेसबुक पर लिखी है. उनका कहना है कि शहाबुद्दीन के खिलाफ नीतीश कुमार का चेहरा उजागर हो गया है. लगे हाथों साहिल ने यह सवाल किया है कि राजद सांसद और वरिष्ठ वकील रामजेठमलानी ने आखिर शहाबुद्दीन के पक्ष में बहस करने से इनकार क्यों कर दिया.
जद यू के प्रवक्ता नीरज कुमार के उस बयान से भी इस मामले के तार जोड़े जा रहे हैं जिसमें उन्होंने शहाबुद्दीन को धमकाते हुए कहा था कि सरकार ऐसी सुई चुभेयेगी जिससे उनको दर्द का पता भी नहीं चलेगा.
टिप्पणीकार अरविंद शेष ने लिखा है कि शहाबुद्दीन की जमानत कैंसिल करवाने के लिए मशहूर और सरोकारी वकील प्रशांत भूषण को बधाई! अब वे कल-परसों में स्वामी असीमानंद को जमानत मिल जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में इसी तरह उपस्थित होंगे शायद… फिर गुजरात दंगे का सबसे बर्बर चेहरा बाबू बजरंगी, माया कोडनानी, वंजारा वगैरह की जमानत या रिहाई को सुप्रीम कोर्ट से रद्द करवाएंगे… फिर लक्ष्मणपुर बाथे, बथानी टोला, सुंदूर जैसी जगहों पर सैकड़ों दलितों के कत्लेआम मचाने वालों के हाईकोर्टों से रिहा कर दिए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा लड़ने जाएंगे शायद..
शहाबुद्दीन समर्थकों में गठबंधन सरकार के रवैये पर भी खासा क्षोभ है. साथ ही सोशल मीडिया में इस बात पर भी गंभीर सवाल उठाये जा रहे है. जमीलजिदान खान ने लिखा है कि समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट और मालेगांव आतंकी हमले का आरोपी आतंकवाद की वारदात के बाद जेल से जमानत पर शहाबुद्दीन के रिहा किये जाने के पांच दिन बाद रिहा हो गये तो सरकार में बैठे लोगों ने कोई हो हल्ला नहीं किया. उन्होंने लिखा कि इस पर भगवा मीडिया भी चुप हो गया. उन्होंने कहा कि क्या ऐसा इसलिए हुआ कि शहाबुद्दीन मुसलमान हैं?