बिहार समेत पूरे देश की शिक्षा व्यवस्था पर संकट है. यह भ्रष्टाचार और कदाचार की गिरफ्त में है. ऐसे में इसे नहीं बचाया गया तो सबकुछ मिट जायेगा.
संसार में जब सब कुछ नष्ट हो जाएगा और केवल शिक्षा भी बची रह जाएगी, तो भी मानवता को बचाया जा सकेगा। भ्रष्टाचार के रोग से समाज का हर तबका पीड़ित है। शिक्षा के क्षेत्र में भी इसका संक्रमण हो चुका हैं । यदि भ्रष्टाचार से शिक्षा को भी बचाया न जा सका तो देश में कुछ भी नही बचेगा। हिन्दी राष्ट्र की अस्मिता से जुड़ी भाषा है। विश्वविद्यालयों के कामकाज में तो इसका उपयोग अनिवार्य रूप से होना चाहिए। पटना विश्वविद्यालय को अपने सभी पत्राचार अनिवार्य रूप से हिन्दी में करने चाहिए।
यह बाते बुधवार को पटना में बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, सम्मेलन की स्थाई समिति के सदस्य प्रो.रास बिहारी सिंह को, पटना विश्वविद्यालय के कुलपति बनाए जाने के उपलक्ष्य में, उनके सम्मान में आयोजित एक समरोह की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन-अध्यक्ष डा. अनिल सुलभ ने कही।
डा.सुलभ ने कहा कि निर्णय लेने वाले सभी महत्वपूर्ण पदों पर योग्य एवं चरित्रवान व्यक्तियों की नियुक्ति नितांत आवश्यक है। विगत वर्षो में कुलपति, प्रतिकुलपति आदि पदों पर हुई नियुक्तियां विवादों में पड़ती रही है, जिसका बड़ा हीं घातक प्रभाव उच्च-शिक्षा पर पड़ा है। यह प्रसन्नता की बात है कि पटना विश्वविद्य़ालय में कुलपति के रूप में प्रो.रास बिहारी सिंह जैसे योग्य शिक्षाविद एवं चरित्रवान व्यक्ति की प्रतिष्ठा हुई है। प्रो.सिंह सम्मेलन की स्थाई समिति के माननीय सदस्य है। इस रूप में उन्हें कुलपति के पद पर प्रतिष्ठित पाकर हमें गौरव की अनुभूति हो रही है। सम्मेलन को यह विश्वास हुआ है कि पटना विश्वविद्यालय में ‘हिन्दी’ को बढाबा मिलेगा। सारे कार्य हिन्दी में संपन्न होंगे।
इसके पूर्व डा. सुलभ ने पुष्प-हार, पुष्प-गुच्छ तथा वंदन-वस्त्र पहना कर प्रो0 सिंह का अभिनंदन किया। इसके पश्चात मंच और सभा में प्रतिष्ठित अनेक साहित्यकारों एवं विद्वानों ने पुष्प-हार एवं उपहार देकर उनका स्वागत किया। समारोह का उद्घाटन दीप प्रज्वलित कर न्यायमूर्ति श्री राजेन्द्र प्रसाद ने किया।
अपने स्वागत भाषण में सम्मेलन के प्रधान मंत्री आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव ने कहा कि पटना विष्वविद्यालय और हिन्दी साहित्य सम्मेलन के बीच एक ऐतिहासिक संबंध रहा है। विष्वविद्यालय के सिनेट में सम्मेलन के प्रतिनिधि सदस्यों ने हिन्दी के कार्यो को आदर्ष रुप दिया। नए कुलपति से हिन्दी को बहुत ही आषाएॅं हैं।
सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष नृपेनद्रनाथ गुप्त ने प्रो.सिंह के साथ बिताए, छात्र-जीवन के अपने मधुर क्षणों को स्मरण करते हुए, प्रो. सिंह के अनेक उज्जवल पक्षों को प्रस्तुत किया।
अपने सम्मान के प्रति कृताता ज्ञापित करते हुए प्रो. सिंह ने सम्मेलन को विश्वास दिलाया कि, पटना विश्वविद्यालय में ‘हिन्दी’ के प्रयोग तथा भाषा साहित्य की उन्नति के लिए वे सदैव प्रयत्नशील रहेंगे। पटना विश्वविद्यालय में, उसके महान गौरव और गरिमा के अनुकूल शैक्षणिक वातावरण सुनिश्चित करना तथा विधार्थियों के हित की चिंता उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता होगी।
इस समारोह में, सम्मेलन के उपाध्यक्ष पं.शिवदत्त मिश्र, डा.शंकर प्रसाद, डॉ. षिववंष पाण्डेय, डा.मेहता नगेन्द्र सिंह, डॉ. कल्याणी कुसुम सिंह, अंबरिष कान्त, रवि घोष, डॉ. बी.एन. विष्वकर्मा, श्रीकांत सत्यदर्षी, प्रवीर पंकज, श्याम बिहारी प्रभाकर, विष्वमोहन चौधरी संत, रामनंदन पसवान, सुषील झा, पवन कुमार मिश्र, मानवाधिकार टुडे के संपादक शशि भूषण सिंह, प्रो.सुशील कुमार झा, राज कुमार प्रेमी, विनोद कुमार मंगलम, हरेराम महतो, षिवानन्द गिरी, सुषील जयसवाल, डॉ. विनय कुमार विष्णुपुरी, अर्जुन प्रसाद सिंह, डॉ. शालिनी पाण्डेय, अरुण कु. प्र. सिन्हा, अनिल सिन्हा, मोहन दुबे, मनोज गोवर्धनपुरी, विष्णु प्रभाकर, नेहाल सिंह, श्यामनन्दन सिन्हा, मनोज झा समेत बड़ी संख्या में सुधीजन उपस्थित थे।
मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र तथा धन्यवाद ज्ञापन ई. चन्द्रदीप प्रसाद ने किया।