भाजपा के वरिष्ठ नेता और पिछले करीब 3 दशक से लालू विरोध की राजनीति कर रहे उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी की नयी पुस्तक शीघ्र ही प्रकाशित होने वाली है। इसका प्रकाशन ‘प्रभात प्रकाशन’ कर रहा है। प्रभात प्रकाशन पिछले एक दशक से सीएम नीतीश कुमार और नीतीश के प्रति आस्था रखने वाले बिहारी लेखकों की पुस्तक छाप रहा है। अकेले नीतीश पर आधारित कम से कम 5 पुस्तकों का प्रकाशन प्रभात प्रकाशन ने किया है। विधान परिषद के शताब्दी वर्ष पर प्रभात प्रकाशन ने अनेक पुस्तकों का प्रकाशन किया था। प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित हो रही सुशील मोदी की नयी पुस्तक का केंद्र बिंदु पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव हैं। पुस्तक में लालू यादव के खिलाफ अखबारों में प्रकाशित खबरें, आंकड़े और फैक्ट्स को संकलित किया गया है। विधान सभा में लालू यादव सरकार के खिलाफ सुशील मोदी के भाषणों को भी संग्रहित किया गया है। पुस्तक के आमुख व प्रस्तावना में मोदी ने लालू यादव के खिलाफ पूरा आक्रोश उड़ेल दिया है। सुशील मोदी की पहली पुस्तक प्रभात प्रकाशन ही प्रकाशित किया था, जो उनकी आत्म कथा है। उनकी दूसरी पुस्तक ‘लालू गाथा’ है।
वीरेंद्र यादव
हारुण रसीद का हुआ ‘प्रमोशन’
बिहार विधान परिषद के उपसभापति हैं हारुण रसीद। सुपौल के निवासी हैं। पिछले करीब 15 महीने से सभापति की जिम्मेवारी का निर्वाह भी कर रहे हैं। अब उनका सत्ता का ‘खूंटा’ और मजबूत हो गया, लगता है। पहले सभापति कक्ष में उनके नाम के साथ पदनाम के रूप में ‘उपसभापति’ लिखा रहता था, लेकिन अब पदनाम बदल गया है। सभापति के लिए निर्धारित कार में भी नेम प्लेट का पदनाम बदल गया है। विधान परिषद में सभापति कक्ष के दरवाजे पर नाम के साथ पदनाम के रूप में उपसभापति के बदले ‘कार्यकारी सभापति’ लिखा हुआ है। पहले उनकी गाड़ी में छोटा-सा उप व बड़ा-सा सभापति लिखा रहता था। अब गाड़ी में लिखा हुआ है – कार्यकारी सभापति। करीब 15 महीने बाद पदनाम में बदलाव की वजह अभी स्पष्ट नहीं हो पायी है। कार्यकारी सभापति के रूप में पदनाम तय होने के बाद माना जा रहा है कि विधान परिषद के अपने शेष कार्यकाल के लिए वे कार्यकारी सभापति बन रहेंगे और सभापति के चुनाव के कयासों पर सरकार ने विराम लगा दिया है।
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लोजपा जो बोल रही है
बरसात के मौसम में मेढ़क तभी टर्राते हैं, जब उनका आशियाना असुरक्षित हो जाता है। वे बैचेन हो जाते हैं। मौसम वैज्ञानिक रामविलास पासवान की लोजपा अब बैचेन दिखने लगी है। एनडीए में उनका आशियाना खतरे में दिखने लगा है। इसलिए पासवान पुत्र ‘चिराग’ आक्रमक हो गये हैं। दलितों का अधिकार नजर आने लगा है, हकमारी दिखने लगी है। इसलिए एससी-एसटी एक्ट को लेकर अब अध्यादेश की मांग भी करने लगे हैं। यह एनडीए में सीट को लेकर दबाव की राजनीति भी हो सकती है। कारण जो भी हो, लेकिन इतना तय है कि एनडीए का मौसम अब ‘खुशगवार’ नहीं रह गया है।