नीतीश ने सम्पर्क यात्रा पूरी कर ली है. अब समय है कि इसका हिसाब किताब लगाया जाये. दैनिक भास्कर में छपे हमारे सम्पादक इर्शादुल हक का विश्लेषण नौकरशाही डॉट इन के पाठकों के पेश ए नजर है.
17 दिनों के संघन सम्पर्क यात्रा के क्रम में नीतीश कुमार ने एक दिन अपने फेसबुक पेज पर लिखा ‘ नवादा यात्रा के क्रम में असाधारण दृश्य सामने था.सड़क के दोनों किनारे बच्चे, युवा, महिलाएं और वृद्ध स्वतः एकत्र होकर स्नेहपूर्वक अभिवादन कर रहे थे! मन में आया कि गाड़ी से उतर कर पैदल ही चल पडूँ… जो एक बार मन से पूरा बिहार घूम ले, बिहार उसके मन में उतर जाता है.हम तो चार दशकों से बिहार घूमते रहे हैं. इसलिए मैं राज्य के प्रति इतना जज़्बाती हूँ’.
नीतीश की सम्पर्क यात्रा का लब्बोलुवाब सिर्फ इतना ही नहीं है.दर असल यह कहानी है उस सेनापति की जो जंग हार जाने के बाद अपने सिपाहियों के पस्त हौसले में नयी जान फूकने और उन्में आत्मविश्वास भरने गांव-गांव बंजारों की तरह घूमता है. इस बंजारेपन के नतीजे एक वर्ष बाद असेम्बली चुनावों में ही सामने आ सकेंगे. फिलहाल इस यात्रा के निहतार्थ पर गौर करने से चार बातें स्पष्ट दिखती हैं.
पहला- जमीन पर खड़े अवाम और सत्ता के शिखर पर बैठे शहंशाह के बीच का फासला अकसर इतना होता है कि जिसे पाट पाना आसान नहीं होता. ऐसा ही नीतीश के साथ हुआ. लेकिन 2014 के आम चुनावों की हार ने उन्हें इसका एहसास करा दिया. बड़ी बात यह है कि उन्होंने इसे समझा भी.
दूसरा- शासन और संगठन चारित्रिक रूप से दो अलग चीजें हैं. नीतीश के आत्मावलोकन ने, उन्हें इसे भी बखूबी महसूस कराया कि नौकरशाही की भूलभुलैया में रम जाने के कारण संगठन कहीं गुम सा हो गया था.
तीसरा– जमीनी कार्यकर्ताओं की फौज यह मान चुकी थी कि उनकी हैसियत महज ‘यूज ऐंड थ्रो’ वाली रह गयी है. इन मुद्दों को नीतीश भलीभांति समझ चुके थे. यही कारण है कि उन्होंने समूची यात्रा में पंचायत से लेकर प्रखंड अध्यक्षों तक से संवाद किया. उन्हें मंच पर बुलाया भी और बोलवाया भी.यह काम सुस्त पड़े रक्त में ऑक्सिजन के संचार जैसा रहा. सोशल मीडिया के वॉल और उन कार्यकर्ताओं के मेहमानखानों में नीतीश के साथ मंच की टंगी तस्वीरें यही संदेश दे रही हैं.
और चौथा– भारतीय जनता पार्टी के प्रचार तंत्र, जिसे नीतीश अफवाह तंत्र कहते हैं, से सामना करने के लिए उन्होंने प्रशिक्षण और प्रबोधन की कक्षायें लगायी. चौक-चौराहों व खेत-खलिहानों में छिड़ने वाली बहसों में उनके कार्यकर्ता तार्किक ढ़ंग से बात रख कर अपने हरीफों को पस्त कर सकें, इसकी कोशिश नीतीश ने की. समय बतायेगा कि नीतीश का यह प्रयास कितना सफल रहेगा.
क्षेत्रीय पार्टियों का आचरण
इन सबके बावजूद कुछ मुद्दे ऐसे हैं जिन पर जद यू ने वैसा ही आचरण किया जैसा कि अक्सर क्षेत्रीय दल करते हैं.क्षेत्रीय पार्टियों का यह सामान्य लक्षण है कि उनका संगठन व्यक्तिवादी आकर्षण के ध्रुवों पर कुछ ज्यादा ही टिका होता है. गोया कि व्यक्तित्व की चमक फीका पड़ने पर संगठन भी बेजान सा हो जाता है. इस मोर्चे पर जनता दल यू क्या कर रहा है? यह सवाल मौजू है. ऐसे में सम्पर्क यात्रा, नीतीश की चमक वापस लाने जैसी लगती है. संगठन के राष्ट्रीय अद्यक्ष शरद यादव की भी, संगठन मजबूत करने के लिए जमीनी स्तर पर कोई भूमिका होनी चाहिए. इस यात्रा में महज एकाध बार मेहमान वक्ता के रूप में शरद का मौजूद रहना ही काफी है या उन्हें भी अपने स्तर पर कुछ करने दिया जाना चाहिए?
हो सकता है कि जद यू के नेता इस बात के जवाब में यह कहें के शरद सपा, राजद व अन्य क्षेत्रीय दलों के संग मिलकर महागठबंधन के स्वरूप को आखिरी शक्ल देने की भूमिका निभा रहे हैं. आने वाले कुछ दिनों में राजद-जद यू के गठबंधन या विलय, जो भी हो उसकी तस्वीर सामने आयेगी. लेकिन यह तय है कि जद यू 2015 असेम्बली चुनावों की व्यापक रणनीति को सामने रख के आगे बढ़ रहा है. अब संभव है कि वह अपने कार्यकर्ताओं के अंदर संचित की गयी नयी ऊर्जा की तीव्रता को बनाये रखने की दिशा में आगे बढ़ाने का प्रयास करेगा.