बिहार की राजनीतिक चर्चाओं में प्रमंडलीय स्तर पर मुख्यत: कोसी और पूर्णिया प्रमंडल पर ही फोकस रहता है। पूर्णिया प्रमंडल की चर्चा आमतौर मुसलमान मतदाताओं की बहुलता के कारण होती है, जबकि कोसी प्रमंडल पप्पू यादव के प्रभाव के कारण चर्चा में रहा है। लेकिन बिहार में सरकार का भविष्य पटना और तिरहूत प्रमंडल की करता है।
वीरेंद्र यादव
छह जिलों वाले तिरहूत प्रमंडल अकेले करीब 20 फीसदी विधायकों को विधान सभा में भेजता है। 243 सदस्यीय विधान सभा के लिए सर्वाधिक 49 विधायक तिरहूत से आते हैं। इसके बाद पटना प्रमंडल आता है। छह जिलों वाले पटना प्रमंडल 43 सदस्यों को विधान सभा में भेजता है। संख्या के लिहाज से सबसे कमजोर भागलपुर प्रमंडल है, जिसकी क्षमता सिर्फ 12 विधायक भेजने की है, जबकि कोसी प्रमंडल 13 विधायकों को भेजता है। तिरहूत और पटना के बाद दरभंगा 30 विधायकों के साथ तीसरे स्थान पर है। मगध चौथे स्थान पर है, जिसकी विधायकों की संख्या 26 है। पूर्णिया और सारण प्रमंडल की क्षमता बराबर-बराबर है। दोनों 24-24 विधायक भेजते हैं। विधायकों की संख्या का जिलावार देखें तो सबसे ज्यादा पटना 14 विधायकों को भेजता है तो सबसे कम शिवहर सिर्फ एक विधायक को भेजता है।
राजनीति का भूगोल
बिहार में भौगोलिक बनावट का असर राजनीति पर नहीं दिखता है। गंगा का दक्षिणी इलाका पूरी तरह मैदानी है। झारखंड से लगी सीमा पर कुछ पहाड़ या जंगल हैं तो लेकिन उसका कोई राजनीतिक महत्व नहीं दिखता है। जबकि गंगा का उत्तरी इलाका नदियों से घिरा हुआ है और जिलों के विभाजन में नदियों की भूमिका है। लेकिन प्रमंडल की सीमा के निर्धारण में नदियों की कोई भूमिका नहीं है। कुल मिलाकर राजनीतिक रूप से संवेदनशील बिहार में भूगोल का राजनीति पर कोई असर नहीं है, लेकिन भूगोल को बेअसर भी नहीं कहा जा सकता है।
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