साढ़े सात वर्ष जेल में बिताने के बाद गुजरात के विवादस्पद डीआईजी डीजी वंजारा सलाखों से बाहर आ गये हैं. आखिर क्या है उन पर आरोप?
आईपीएस डीजी वंजारा इशरत जहां और सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामलों में आरोपी रहे हैं. उन पर आरोप लगे कि उन्होंने इशरत जहां और उसके रिश्तेदार को आतंकवादी बता कर उन्हें गोली मारने में भूमिका निभाई. इसके बाद यह मामला काफी तूल पकड़ता गया. वंजारा पर यह भी आरोप लगा कि उन्होंने तुलसी प्रजापति और शोहराबुद्दीन शेख का भी फर्जी मुठभेड़ किया. वंजारा गुरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के काफी करीबी अफसरों में माने जाते रहे हैं.
लेकिन जब ये मामले अदालत में गये और अदालतों में इस पर कार्रवाई शुरू हुई तो उन्हें गिरफ्तार किया गया और जेल जाना पड़ा.
एक स्थानीय अदालत ने इशरत जहां मामले में तीन फरवरी को उन्हें जमानत दे दी थी जबकि सोहराबुद्दीन शेख और तुलसी प्रजापति मामले में मुंबई की एक अदालत से उन्हें पहले ही जमानत मिल गयी थी। शेख और प्रजापति के मामले को उच्चतम न्यायालय ने एक साथ जोड़ दिया था.
हालांकि जेल से निकलने के बाद अब वंजारा को गुजरात छोड़ना होगा क्योंकि अदालत ने उन्हें सशर्त जमानत देते हुए राज्य में प्रवेश नहीं करने का निर्देश दिया था.
वंजारा को वर्ष 2005 के सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ के सिलसिले में सीआईडी क्राइम ने 24 अप्रैल 2007 को गिरफ्तार किया था और तभी से वह सलाखों के पीछे थे.
केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने सोहराबुद्दीन शेख, प्रजापति और इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ मामलों में वंजारा को आरोपी बनाया था। वंजारा उस वक्त शहर की अपराध शाखा में राज्य के आतंक निरोधी प्रकोष्ठ के प्रमुख थे.
2004 में हुआ इशरत का एनकाउंटर
अहमदाबाद के बाहरी इलाके में 15 जून, 2004 को गुजरात पुलिस के साथ मुठभेड़ में मुंब्रा में रहने वाली कॉलेज की छात्रा इशरत, जावेद शेख उर्फ प्रणेश पिल्लई, अमजद अली अकबराली राणा और जीशान जौहर के मारे जाने की घटना के वक्त वंजारा अपराध शाखा में पुलिस उपायुक्त थे.
अपराध शाखा ने उस वक्त दावा किया था कि मुठभेड़ में मारे गए लोग लश्कर ए तैयबा के आतंकी थे और तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करने के लिए गुजरात आए थे.
सीबीआई ने गुजरात उच्च न्यायालय की ओर से नियुक्त विशेष जांच टीम (एसआईटी) से जांच की जिम्मेदारी अपने हाथ में ली थी. सीबीआई ने अगस्त 2013 में इस मामले में आरोप पत्र दाखिल किया था। आरोप पत्र में कहा गया था कि यह मुठभेड़ फर्जी थी और शहर की अपराध शाखा और क्राइम ब्रांच और सहायक खुफिया ब्यूरो (एसआईबी) ने संयुक्त अभियान में इसे अंजाम दिया.