अब जबकि यह तय है कि जदयू राजद का विलय नहीं होगा, बात गठबंधन की पेचीदगियों से गुजर कर आगे बढ़ रही है. पेचीदगियां सुलझाने के लिए खबर है कि शरद यादव का एक पैर लालू के आवास में है तो दूसरा नीतीश के आशियाने में.
इर्शादुल हक, सम्पादक नौकरशाही डॉट इन
हालांकि लालू-नीतश के घरों का फासला, बस इतना है कि पैदल 3 मिनट में पहुंचा जा सके लेकिन राजनीति की पेचीदगियों ने इस फासले को जरा बढ़ा सा दिया है. इस फासले को समाप्त करने की मुहिम में शरद लगे हैं.
दोनों दलों के बीच खीचतान तो है लेकिन जनता परिवार के एका की आश लगाये लोगों के लिए संतोष की बात यह है कि दोनों ने कम से कम इतना तो तय कर लिया है कि ऐसे बयान मीडिया में हरगिज न दिये जायें जिससे निगेटिव मैसेज फैले. इसलिए दोनों दलों ने इस बात पर तो निश्चित ही सहमति बना ली है कि असहमति के मुद्दे पर सहमत होने तक, सहमति के मुद्दों को हाइलाइट किया जाता रहे.
सहमति इस बात को लेकर है कि हर हाल में भाजपा को पछाड़ा जाये और फिलवक्त असहति इस पर की चुनाव में कौन कितनी सीटों पर लड़े. नेता पद का विवाद शह-मात का महज गेम भर है. दर असल चुनाव में किसका चेहरा सामने हो, यह मौन रूप में दोनों तय कर चुके हैं. यह चेहरा नीतीश ही होंगे. पर बीच-बीच में जो भभकी भरे बयान आ रहे हैं वे भी प्रेशर गम का ही हिस्सा हैं. दर असल बात सीटों के बंटवारे पर बढ़ रही है. यहीं पर कुछ असहमति है. इन्हीं असहमतियों को पाटने के लिए नीतीश-लालू , शरद का सहारा ले रहे हैं.
बराबरी का सवाल
कुछ पत्रकारों का कहना है कि जद यू यह मान कर चल रहा है कि भाजपा से अलग होने के बाद उसे तनिक त्याग करना होगा. मतलब वह कुछ सीटें राजद को बढ़ा कर देने को तैयार है. इसके पीछे के तर्क को समझाते हुए भास्कर के पत्रकार विजय कुमार कहते हैं कि पिछले वर्ष उप चुनाव में दोनों ने बराबर सीटों पर लड़ा. विदान परिषद के होने वाले 24 सीटों के चुनाव में भी दोनों दल 10-10 सीटों पर लड़ने को राजी हैं. इस लिए जद यू इस बात पर जोर दे रहा है कि राजद को असेम्बली चुनाव में 100 सीटें दी जायें, 100 पर जद यू लड़े और बाकी अलायंस पार्टनर कांग्रेस और आरसीपी को दी जाये.
दर असल खीच तान यहीं है. राजद के करीबी सूत्रों का तर्क है कि अगर नीतीश को राजद मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के रूप में स्वीकार करने को तैयार है तो उसे, बदले में कुछ सीटों की कुर्बानी करनी पड़ेगी. शरद यादव को, बताया जाता है कि लालू यही समझाने में लगें हैं और बता रहे है कि नीतीश को इस बात को समझाइए. इसलिए शरद कभी लालू के घर जा रहे हैं तो कभी नीतीश के घर. बात जारी है. उम्मीदें कायम हैं, पर प्रेशर पॉलिटक्स अपनी जगह तो है ही.