जनवरी। आज से दो दशक पूर्व, जिन दिनों बिहार की राजधानी पटना में साहित्यिक गतिविधियों पर विषाद का ताला पड़ गया था। जब साहित्यिक गतिविधियों का केंद्र रहे, बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन ने भी मौन धारण कर लिया था, तब साहित्य–सारथी बलभद्र कल्याण ने अपना द्विचक्री–रथ पर आरूढ़ होकर नगर में साहत्यिक चुप्पी को तोड़ा और एक नवीन सारस्वत–आंदोलन का शंख फूँका था।
उन्होंने भारत के प्रथम राष्ट्रपति तथा हिंदी के अनन्य सेवक देशरत्न डा राजेंद्र प्रसाद के नाम से ‘राजेंद्र साहित्य परिषद‘ की स्थापना की तथा उसके तत्त्वावधान में साहित्यिक आयोजनों की झड़ी लगाकर राजधानी को पुनः जीवंत बना दिया।
यह बातें आज बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, जयंती पर आयोजित समारोह और कवि–सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए,सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, श्री कल्याण न केवल उच्च श्रेणी के प्रतिभाशाली साहित्यकार हीं थे, अपितु एक साहित्यिक कार्यशाला भी थे, जिनका आश्रय और प्रोत्साहन पाकर अनेक नवोदित साहित्यकारों ने ख्याति प्राप्त की और हिंदी और लोक–साहित्य को बड़ा अवदान दिया। उन्होंने अनेकों नेपथ्य में जा चुके सहित्य–सेवियों को भी मंच, अवसर और सम्मान प्रदान किया। घरों में दम साधे बैठे अनेकों साहित्यकारों को प्रकाश में लाया। उनसे उपकृत हुए साहित्यिकों की संख्या गिनाई नही जा सकती।
डा सुलभ ने कहा कि, कल्याण जी देश के विभिन्न प्रांतों के बीच भाषाई और सांस्कृतिक एकता के लिए भी निरंतर प्रयत्नशील रहे। इसी क्रम में उन्होंने‘बिहार केरल संस्कृति मंच‘, ‘सांस्कृतिक सद्भावना मंच‘, भारत नेपाल संस्कृति मंच‘ आदि अनेक संस्थाओं की स्थापना की।
अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि, कल्याण जी की कलम भी ‘कल्याणी‘रही। वे निरंतर साहित्यकारों के सम्मान और नवोदितों के प्रोत्साहन के लिए कार्य करते रहे। उनकी पुस्तक ‘कलम कल्याणी‘से उनके जीवन और उनके साहित्यिक अवदान को समझा जा सकता है।
समारोह के मुख्य अतिथि और पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा एस एन पी सिन्हा ने कहा कि,कल्याण जी स्वयं में एक साहित्यिक संस्था थे। बिहार सरकार के कृषि विभाग से अवकाश लेने के बाद वे साहित्य का अलख जगाने में लग गए और निरंतर गतिमान रहे।
मगध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति मेजर बलबीर सिंह ‘भसीन‘,प्रो वासुकीनाथ झा,डा मेहता नगेंद्र सिंह, बच्चा ठाकुर,अमिय नाथ चटर्जी तथा डा विनय कुमार विष्णुपुरी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन का आरंभ कल्याण जी की पुत्री सुजाता वर्मा द्वारा की गई वाणी–वंदना से हुआ। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने अपनी ग़ज़ल को स्वर देते हुए कहा कि, “मेरे दिल पे तो राज तेरा है/ हाँ यह आपका बसेरा है/ प्यार को यूँ कभी ना आज़माओ/ प्यार तो जीने का सलीक़ा है“। गीति–चेतना के चर्चित कवि विजय गुंजन का कहना था कि, “रुकी क़लम यह लिख जाए कोई सुंदर गीत/ संशय मिटे नहीं भरमाए, भ्रम बनभंग में मीत“।
वरिष्ठ कवि राज कुमार प्रेमी, ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश‘,डा सुलक्ष्मी कुमारी,डा सुधा सिन्हा, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, डा आर प्रवेश, सिंधु कुमारी, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री,सत्येंद्र कुमार पाठक,प्रभात कुमार धवन,ई आनंद किशोर मिश्र,अर्जुन प्रसाद सिंह,राज किशोर झा, डा नरेश प्रसाद, शानू कुमार, प्रभाष कुमार,श्यामा झा, रवींद्र कुमार सिंह, बाँके बिहारी साव तथा सच्चिदानंद सिन्हा ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया।