कला, संगीत और साहित्य के संरक्षण और पोषण में बिहार के जिन राज–घरानों के नाम आदर से लिए जाते हैं, उनमें दरभंगा–राज और बनैली–राज के नाम विशेष उल्लेखनीय है। दरभंगा–राज की शक्तियाँ, सामर्थ्य और विस्तार बनैली–राज के सामने बहुत बड़ा था।
अपेक्षाकृत बहुत छोटा होकर भी बनैली ने इन सारस्वत प्रवृतियों के संरक्षण और पोषण में जो कार्य किए, उनसे उसके प्रति सहज हीं मन श्रद्धा से भर उठता है। बनैली–राज के अधिपति राजाबहादुर कीर्त्यानंद सिंह कोमल भावनाओं और सारस्वत–चेतना के साधु–पुरुष थे। उन्होंने न केवल साहित्य और संस्कृति के पोषण और उनके विकास के लिए बड़े–बड़े दान–अवदान हीं दिए, अपितु अपने राज–दरबार में साहित्यकारों और कलाकारों को बड़े आदर और सम्मान से प्रतिष्ठा भी दी।
उन्होंने बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के भवन–निर्माण में भी सन १९३७ में एक मुश्त दस हज़ार रूपए की सहायता राशि दी थी, जो आज की तुलना में ३० लाख रूपए से अधिक आँकी जाएगी। आज उनके जैसे उदार दानियों और संस्कृति–संरक्षकों का अकाल पैड गया। यही कारण है कि, आज ये सारस्वत प्रवृतियाँ समाज में हासिए पर चली जा रही है। आज हमें राजाबहादुर और भी अधिक श्रद्धा से स्मरण होते हैं।
यह बातें आज यहाँ बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में महात्मा गाँधी और लाल बहादुर शास्त्री की जयंती के साथ साहित्य सम्मेलन के अत्यंत मूल्यवान संपोषक बनैली के राजाबहादुर कीर्त्यानंद सिंह की जयंती पर आयोजित समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, प्रदेश के कृतज्ञ साहित्यकारों ने सम्मान स्वरूप उन्हें एक सत्र के लिए सम्मेलन का अध्यक्ष भी बनाया और सम्मेलन भवन पर उनकी नाम पट्टिका भी लगाई, जो आज भी देखी जा सकती है। डा सुलभ ने जयंती पर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी तथा भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हुए उन्हें भारतीय राजनीति का श्रेष्ठतम उन्नायक बताया।
अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त ने कहा कि, राजा बहादुर ने भारतीय संस्कृति के सँवर्द्धन में अनेक योगदान दिए, किंतु साहित्य सम्मेलन भवन के निर्माण में उन्होंने जो अवदान दिया, उसने उन्हें अमर कर दिया।
इस अवसर पर सम्मेलन के उपाध्यक्ष पं शिवदत्त मिश्र, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश‘, वरिष्ठ लेखक चंद्र भूषण प्रसाद, कवि सुनील कुमार दूबे, विश्वमोहन चौधरी संत, नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल‘, नरेंद्र देव, अनिल कुमार सिन्हा तथा गौरव राज ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र तथा धन्यवाद–ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।