मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नया कार्यकाल कई मामलों में नया साबित हो रहा है। अधिकारियों पर इनका विश्वास बढ़ा है तो मंत्री हासिए पर धकेले जा रहे हैं। वे अब जदयू के साथ राजद, कांग्रेस और सीपीआई विधायकों की बैठक कर रहे हैं। शपथ ग्रहण के बाद जदयू विधायक दल की बैठक के बजाय समर्थकों समेत संयुक्त विधायक दल की बैठक कर रहे हैं।
वीरेंद्र यादव
नये कार्यकाल में नीतीश ने अपने सरकारी कार्यक्रमों का स्वरूप बदल दिया है। वे मंत्रियों के बदले आइएएस अधिकारियों के साथ लेकर चल रहे हैं। सीएम के कार्यक्रमों की मंच व्यवस्था देखने से यह अंतर स्पष्ट दिखायी देता है। जिस विभाग का कार्यक्रम होता है, उसके विभागीय मंत्री ही मंच पर नजर आते हैं। बाकी विभागीय अधिकारी के साथ मुख्यमंत्री सचिवालय से जुड़े अधिकारी मौजूद रहते हैं। राजधानी में आयोजित सीएम के सरकारी कार्यक्रमों में उनके प्रधान सचिव डीएस गंगवार, सचिव चंचल कुमार व अतीश चंद्रा में से कोई दो जरूर मंच पर आसीन होते हैं। सीएम अपने इन अधिकारियों का पदनाम व नाम लेना नहीं भुलते हैं। जबकि पहले के कार्यक्रमों में सीएम के साथ कई मंत्री भी मंचासीन रहते थे।
सीएम अब मंच पर ही संबंधित विभाग के अधिकारियों को आवश्यक निर्देश देते हैं और समय से काम हो जाने का भरोसा भी चाहते हैं। यह बदलाव उनके पुराने अनुभव से प्रेरित रहा है। अपने सहयोगी मंत्रियों की कार्यदक्षता से सीएम पूरी तरह वाकिफ हो गये हैं। वह जानते हैं कि काम करना अधिकारियों को ही है तो मंत्रियों को बीच में क्यों पड़ना है। हां, इस बात का ख्याल जरूर रखा जाता है कि मंत्रियों से औपचारिक सहमति फाइलों पर ले ली जाए। मुख्यमंत्री की बदली हुई कार्यशैली का एक फायदा जरूर हो रहा है कि अनावश्यक प्रक्रिया में उलझने के बजाये कार्यों का निष्पादन ज्यादा आसान हो गया है। इस सक्रियता का लाभ चुनाव में सीएम नीतीश कुमार को मिल सकता है।
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