साहित्य सम्मेलन में कवयित्री के गीत–संग्रह ‘गंध ऋचा‘ का हुआ लोकार्पण
पटना,८ अक्टूबर। विदुषी कवयित्री सुभद्रा वीरेंद्र द्वारा रचित गीत–संग्रह ‘गंध–ऋचा‘ शब्द और संवेदना का सुंदर उदाहरण है। गीतकार स्वयं संगीत की आचार्य हैं, इसलिए इन गीतों में बहुत हीं मर्म–स्पर्शी और अनूगूँजभरी भाव–राशि है।
यह बातें आज यहाँ बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में कवयित्री सुभद्रा वीरेंद्र के गीत–संग्रह ‘गंध ऋचा‘ का लोकार्पण करते हुए, सुप्रतिष्ठ साहित्यकार तथा विश्वविद्यालय सेवा आयोग, बिहार के पूर्व अध्यक्ष प्रो शशिशेखर तिवारी ने कही। प्रो तिवारी ने कहा कि, यह कृति इस अर्थ में भी उदाहरणीय है कि, आज के तमूल कोलाहल और अंधकार के युग में ‘गंध–ऋचा‘ अंतर के प्रेम की पुकार से पाठकों के हृदय आशा और विश्वास के प्रकाश से ज्योतित करेगी।
इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के साहित्यमंत्री और विद्वान समालोचक डा शिववंश पाण्डेय ने लोकार्पित पुस्तक को गीति–साहित्य की एक अनमोल निधि बताया। उन्होंने कहा कि, कवयित्री के रचना–संसार का मूल तत्व प्रेम और समर्पण है।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि, आदरणिया कवयित्री सुभद्रा वीरेंद्र के गीतों में उस शाश्वत प्रेम और दिव्य समर्पण की अभिव्यक्ति होती है, जो आदमी को‘आदमी‘ बनाता है, और जो कलांत मन–प्राण को दिव्य शांति और अनंत ऊर्जा प्रदान करता है। सुभद्रा जी के गीत–ग़ज़लों में सामवेद की भाँति जीवन और उसके मूल्यों के प्रति मंगल और उत्साह का भाव है। उनके करुण राग में भी एक दिव्य–स्पंदन और प्रेरणा के तत्त्व हैं। भोजपुरी और हिंदी, दोनों हीं भाषाओं में इन्होंने गीत और छंद को समृद्ध किया है। सुभद्रा जी समकालीन गीति–साहित्य में एक विनम्र किंतु अत्यंत प्रभावशाली हस्ताक्षर हैं।
कवयित्री के विद्वान पति और समालोचक प्रो कुमार वीरेंद्र, सम्मेलन के उपाध्यक्ष पं शिवदत्त मिश्र, डा शंकर प्रसाद, डा कल्याणी कुसुम सिंह, घमंडी राम, पुष्पा जमुआर, डा अर्चना त्रिपाठी, अनुपमा नाथ, डा सुमेधा पाठक, सुनील कुमार दूबे, कवि राज कुमार प्रेमी, ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
कृतज्ञता ज्ञापन करती हुई, सुभद्रा जी ने लोकार्पित पुस्तक से ३ प्रतिनिधि गीतों का सस्वर पाठ किया। पुस्तक का शीर्षक गीत– “प्रणय–ऋचा के छंदस नभ तुम/ मैं अभिरामा क्षितिज तुम्हारी / योग क्षेम यह जनम जनम का/ मनहर सम के अंतस भव तुम” का सुधी श्रोताओं ने मुक्त–कंठ से सराहना की। “अक्षर–वन में खो जाती हूँ/ सुर–लय है सपनों की नगरी/ प्रीत हृदय में बो जाती हूँ” तथा “कुरुक्षेत्र हुआ मन हमारा/ महाभारत होगा दुबारा” गीतों का प्रभाव श्रोताओं पर देर तक रहा। मुग्ध भाव से उपस्थित सुधिजनों ने काव्य–पाठ का आनंद लिया तथा प्रत्येक गीत के पश्चात करताल–ध्वनि से कवयित्री का स्वागत और उत्साह–वर्द्धन किया।
इस अवसर पर,रामनंदन पासवान, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, रामाकान्त पांडेय, हरिशचंद्र प्रसाद ‘सौम्य‘, अनिल कुमार सिन्हा, अश्वनी कुमार कविराज, कुमार राजेश, नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल‘,शशिभूशन उपाध्याय ‘मधुप‘, विश्वमोहन चौधरी संत, राम शंकर प्रसाद, जगदीश्वर प्रसाद सिंह, ऋतु सिन्हा समेत बड़ी संख्या में साहित्य–सेवी एवं प्रबुद्धजन उपस्थित थे। मंच का संचालन कवि योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन सम्मेलन के प्रबंध मंत्री कृष्ण रंजन सिंह ने किया।