“हम मनुजता के प्रतिमान, आदि सभ्यता हमारी है/ कोई भूखंड नहीं अपना, समस्त वसुधा हमारी है” , “हम सबने क्या–क्या न गवाँया/ फाँसी चढ़ गए, ख़ून बहाया“, हाथ तिरंगा, दिल में गंगा/ देश–भक्ति का हूंकार लिए, मिट जाना रक्षा की वलिवेदी पर——- । दिल को निचोड़ कर निकाल लेने वाली ऐसी हीं वेदना, उत्सर्ग और उत्साह भरने वाली पंक्तियों से साहित्य सम्मेलन का प्रांगण गुंजाएमान हो रहा था। वाह–वाह/ आह–आह के साथ तालियों की गड़गड़ाहट हो रही थी। अवसर था स्वतंत्रता–दिवस समारोह पर आयोजित राष्ट्रीय गीत–गोष्ठी का।
रिमझिम फुहारों के बीच, देश–भक्ति की गंध लिए बह रही गीत–सरिता में पहली अंजलि कवि राज कुमार प्रेमी ने अपने इस गीत से दी– “कितना सुंदर कितना न्यारा, प्यारा हिंदुस्तान/ जान से बढ़ाकर प्यारा अपना भारत देश महान/ रहे सलामत मंदिर मस्जिद गिरिजा और गुरुद्वारा/ मालिक एक है, डेरा चारो/ इंसां है उसको प्यारा “। डा रमाकान्त पाण्डेय ने स्वतंत्रता–आंदोलन का मार्मिक चित्र खींचते हुए इस गीत का सस्वर पाठ किया तो श्रोताओं की आँखें सजल हो गईं– “हम सबने क्या–क्या न गँवाया / फाँसी चढ़ गए, ख़ून बहाया/ सीनों पर खाई जब गोलियाँ/ तब जाकर तिरंगा लहराया“।
कवि जय प्रकाश पुजारी ने गाया कि, “हाथ तिरंगा, दिल में गंगा, जिसका नहीं कोई है शानी/ हम हैं हिंदुस्तानी, हम है हिंदुस्तानी“। कवि योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने अमर वलिदानियों को इन पंक्तियों से नमन किया कि, “छाती पर जिसने गोली खाई/ हँस चढ़े फाँसी जो वालिदानी/ भारत माता की बेड़ी काटने/ तन–मन की लगा दी जिसने बाज़ी/ देश के वीर सपूतों की हम भूल न सकते क़ुर्बानी“।
कवि–गोष्ठी के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने भारत की गौरव–गाथा को शब्द देते हुए कहा कि, “हम मनुजता के प्रतिमान, आदि–सभ्यता हमारी है/ कोई भूखंड नहीं अपना समस्त वसुधा हमारी है/बताया जीवन का क्या तत्व/सिखाया तप का भी महत्व/ मूल्य के हवन–कुण्ड में नित्य/ पड़ी समिधा हमारी है“।
कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश‘, दिनेश्वर लाल ‘दिव्यांशु‘, कवयित्री वीणा अम्बष्ठ ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। इस अवसर पर सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त, प्रो वासकी नाथ झा, कुमार अनुपम, चंद्रदीप प्रसाद, आनंद किशोर मिश्र, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, शंकर शरण मधुकर, नीरव समदर्शी, अमरेन्द्र कुमार, बाँके बिहारी साव, कवि आर प्रवेश, रेखा सिन्हा, कुमारी मेनका, संजीव कुमार, निकुंद माधव, विजय कुमार दिवाकर, विशाल प्रसाद तथा जगन्नाथ प्रसाद गुप्ता समेत बड़ी संख्या में साहित्य–सेवी व सुधीजन उपस्थित थे। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।
इसके पूर्व, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने सम्मेलन परिसर में राष्ट्रीय–ध्वज का आरोहण कर स्वतंत्रता–दिवस समारोह का आरंभ किया। उपस्थित साहित्यकारों ने, राष्ट्र–गान के साथ ध्वज को सलामी दी।