राज्य सरकार के एक बड़े साहब हैं। राजधानी के वीवीआइपी इलाके में रहते हैं। वैसा इलाका जहां न ताड़ी बेचना संभव है, न पीना। राज्य में ताड़ी के प्रतिबंध को लेकर कई तरह की भ्रांति है। पीना है, नहीं पीना है, कब पीना है, कहां पीना है। कुछ तय नहीं है।
बड़े साहब के आवास में दर्जनभर ताड़ के पेड़ हैं। पहले कुछ पासी ताड़ी उतारते रहे थे। लेकिन इस बार ताड़ी को लेकर भ्रांति के कारण पासी परेशान हैं। लेकिन ताड़ी उतारने का सिलसिला जारी है। ताड़ी कई परिवारों की आय स्रोत है। ताड़ी उतारने का सिलसिला अभी भी जारी है, लेकिन बेचने को लेकर पासी परेशान हैं। अब सरकार ने ताड़ी को लेकर अलग-अलग नीति बनायी है। नीरा के लिए अलग नीति और दिन चढ़ने वाले ताड़ी के लिए अगल नीति।
लेकिन बड़े साहब के आवास में स्थित ताड़ से ताड़ी उतारने वाले की अपनी परेशानी है। उसे कहां बेचने जाए। इस इलाके में बेचना संभव है। बहुत दूर लेकर जाकर बेचना भी संभव नहीं है, क्योंकि लंबी दूरी ढोने के बाद ताड़ी का स्वाद ही खराब हो जाएगा। यह परेशानी अकेले बड़े साहब के आवास का ताड़ी उतारने वाले की नहीं है। राजधानी के कई बड़े साहबों और सरकारी आवासों में ताड़ के पेड़ हैं। सबका यही हाल है। इन ताड़ी उतारने वाले पासियों का दर्द समझने के लिए न सरकार तैयार है और न बड़े साहब।