प्रख्यात समालोचक और कवि प्रो केसरी कुमार हिंदी कविता में प्रयोगवादी विचारों के पोषक थे। आचार्य नलिन विलोचन शर्मा, केसरी जी तथा श्री नरेश ने एक नाए प्रयोगवाद को जन्म दिया, जिसे ‘प्रपद्यवाद‘ कहा गया, जिसका एक दूसरा नाम, इन तीनों अद्भुत प्रतिभा–संपन्न साहित्यकारों के नाम के प्रथमाक्षर से निर्मित ‘नकेन–वाद‘ भी बहुत प्रचलित है। साहित्यकारों की उस पीढ़ी में जहाँ इन तीनों ने हिंदी साहित्य में प्रयोग–धर्मिता का एक नया इतिहास गढ़ रहे थे, वहीं समकालीन साहित्य को अपनी विलक्षण प्रतिभा से प्रभावित कर रहे विद्वान आचार्य मुरलीधर श्रीवास्तव ‘शेखर‘ काव्य–साहित्य को उन्नत कर रहे थे।
यह बातें आज यहाँ बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में प्रो केसरी कुमार और मुरलीधर श्रीवास्तव ‘शेखर‘ की जयंती पर आयोजित समारोह की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि साहित्य वह अमर होगा जो समाज की मौलिक ज़रूरतों पर केंद्रित और मानव–मन के वैज्ञानिक समझ पर आधारित होगा, जिसमें समाज की पीड़ा की अभिव्यक्ति भी होगी, और, जिसमें कातर नयनों के आँसू पोछने की शक्ति और दुखों के निवारण के मार्ग भी परिलक्षित होंगे।
इस अवसर पर, शेखर जी की समग्र रचनावली ‘मुरली–गीतांजलि‘ एवं वरिष्ठ हिंदी–सेवी डा केशव चंद्र तिवारी की पुस्तक “ग्रामीण संस्कृति की धरोहर” का लोकार्पण भी किया गया। पुस्तक पर अपना विचार व्यक्त करते हुए, सम्मेलन के साहित्यमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि, डा तिवारी की पुस्तक, जैसा कि उसका नाम है, भारत की ग्रामीण संस्कृति की धरोहर को समेटती है।लेखक ने अपनी बातों को कहने के लिए लोकभाषा की कहावतों और लोकोक्तियों का अनूठा प्रयोग किया है। पुस्तक स्वागत योग्य है।
पुस्तकों का लोकार्पण करते हुए, हिंदी प्रगति समिति, बिहार के अध्यक्ष और वरिष्ठ कवि सत्य नारायण ने कहा कि, डा तिवारी की लोकार्पित पुस्तक हमें अपने जड़ों से जोड़ती है। पुस्तक सात खंडों में है। इसमें लेखक ने देसी महावरों , कहावतों लोकोकटोयों और विभिन्न अवसरों और उत्सवों में गाए जाने वाले गीतों का श्रम–साध्य संकलन किया है। संकलित गीतों में लोरी और प्राती भी सम्मिलित हैं।
दोनों साहित्यकारों पर मोनोग्राफ पढ़ते हुए, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि, केसरी जी और शेखर जी दोनो हीं हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में अपनी अप्रतिम भूमिका निभाई है। केसरी जी अपनी विद्वता के लिए संपूर्ण भारत वर्ष में ख्यात थे।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष पं शिवदत्त मिश्र, डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, प्रो वासुकी नाथ झा, ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर कवि बच्चा ठाकुर, राज कुमार प्रेमी, डा अर्चना त्रिपाठी, जय प्रकाश पुजारी, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, डा शकुंतला मिश्र, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, पं गणेश झा, बाँके बिहारी साव, लता प्रासर, पंकज प्रियम, नरेंद्र देव, अश्विनी कुमार, कृष्ण मोहन प्रसाद, नंदिनी प्रनय अधिवक्ता सुरेश अरोड़ा, शिवानंद गिरि, राज किशोर झा, सूर्यदेव सिंह, सुधा सिन्हा तथा पवन कुमार मिश्र समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
अतिथियों का स्वागत सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया। मंच संचालन किया योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने।