हिंदी के महान साहित्य–सेवी आचार्य रामचंद्र शुक्ल साहित्य–जगत के पुरोधा थे। हिंदी–साहित्य का इतिहास लिख कर उन्होंने एक ऐसा कार्य किया,जिसके लिए भारतीय समाज सदा ऋणी रहेगा। हिंदी की उन्नति में उनका योगदान पूज्य है।
यह बातें आज यहाँ, साहित्य सम्मेलन में हिंदी के महान उन्नायक और इतिहासकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल की जयंती के अवसर पर वरिष्ठ कवि हरिश्चचंद्र प्रसाद ‘सौम्य‘ की काव्य–पुस्तक ‘अंतर्प्रवाह‘ का लोकार्पण करते हुए, भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष न्यायमूर्ति चंद्रमौली कुमार प्रसाद ने कही। श्री प्रसाद ने कहा कि, वे साहित्यकार न होकर भी कवि सौम्य के लेखन और श्रम से परिचित रहे हैं। कवि के अंतर में जो समाज की पीड़ा है वह इस पुस्तक के माध्यम से प्रकट हुई है।
पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने लोकार्पित पुस्तक का स्वागत करते हुए कहा कि, कवि ने समाज में हो रहे क्षरण की पीड़ा को समझा है और उसमें परिवर्तन का आग्रही है। कवि समझता है कि, प्रत्येक व्यक्ति को सकारात्मक बदलाव की ओर बढ़ना चाहिए।
इस आवसर पर अपना विचार व्यक्त करते हुए, विश्वविद्यालय सेवा आयोग, बिहार के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ साहित्यकार प्रो शशिशेखर तिवारी ने कहा कि, कविता हमारे दुखों का निवारण करती है। आँसू पोंछतीं है। कविता मार्मिक होती है। इसीलिए आत्मा को छूती है।
अपने अध्यक्षीय उद्गार में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि, आचार्य शुक्ल ने हिंदी साहित्य में अपने अभूतपूर्व अवदान के लिए सदा स्मरण किए जाते रहेंगे। ‘हिंदी साहित्य का इतिहास‘ लिखकर उन्होंने जो कार्य किया, वह उन्हें ‘हिंदी के व्यास‘ के सर्वोच्च स्थान पर प्रतिष्ठित करता है। वे एक महान आलोचक, निबंधकार, साहित्येतिहासकार, संपादक, कथाकार और कवि थे। उन्होंने काव्य में छंद और रस की नूतन व्याख्या की और कहा कि, साहित्य और काव्य का उद्देश्य लोक–मंगल होना चाहिए। वे कहा करते थे कि, “जो पाठकों और श्रोताओं के मन में वही भाव जगा दे, जिसके घनीभूत होने से कवि के हृदय से प्रस्फुटित हुई, वही कविता है“। इस दृष्टि से वयोवृद्ध कवि श्री सौम्य की लोकार्पित पुस्तक की अनेक कविताएँ लोक–रंजनकारी और हितकारी कही जा सकती हैं।
डा सुलभ ने कहा कि, कवि का आध्यात्मिक चिंतन और नैसर्गिक प्रेम का मृदुल भाव उनकी रचनाओं में प्रकट हुआ है। कविता का भाव अंतर्मुखी ही होता है और उसका प्रवाह भी स्वाभाविक रूप से आंतरिक है। अस्तु कवि ने अपने अंतर्प्रवाही भावों को इस पुस्तक में अभिव्यक्त किया है।
इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के प्रधानमंत्री आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव ने कहा कि, कवि पर सरस्वती प्रसन्न रहती हैं, तभी उन्होंने ऐसी प्रभावोत्प्रेरक रचनाएँ कर सके हैं।
अपने कृतज्ञता–ज्ञापन के क्रम में कवि सौम्य ने अपनी लोकार्पित पुस्तक से प्रतिनिधि रचनाओं का पाठ भी किया। सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त, डा शंकर प्रसाद, ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर सम्मेलन के प्रचार मंत्री कवि राज कुमार प्रेमी, प्रो वासुकी नाथ झा, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, चंद्रदीप प्रसाद, शालिनी पांडेय, लता प्रासर, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा मनोज कुमार गोवर्द्धनपुरी, बच्चा ठाकुर, डा बी एन विश्वकर्मा, अनिल कुमार सिन्हा, जगदीश्वर प्रसाद सिंह, कवि के अधिवक्ता पुत्र राम शंकर प्रसाद, विश्वमोहन चौधरी संत,सच्चिदानंद सिन्हा, डा अजय कुमार, जय प्रकाश पुजारी, सुबोध कुमार युगबोध, ओम् प्रकाश पुजारी, श्रीकांत व्यास, आनंद किशोर शास्त्री, नीलाम सिन्हा, डा रीना सिन्हा, जयश्री वर्मा समेत बड़ी संख्या में साहित्यकार, अधिवक्ता एवं प्रबुद्धजन उपस्थित थे। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।