साहित्य सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष डा जगदीश पाण्डेय की जयंती पर आयोजित संगोष्ठी में विद्वानों ने कहा
पटना,१६ जुलाई। हिंदी भाषा और साहित्य की उन्नति में हिंदी के मनीषी विद्वानों और साहित्यकारों ने बहुत बड़ा योगदान दिया है। किंतु उनकी तुलना में हिंदी–सेवी संस्थाओं का योगदान कहीं बड़ा है। हिंदी साहित्य सम्मेलन,नागिरी प्रचारिणी समिति, राष्ट्र भाषा परिषद आदि देश की अनेक छोटी–बड़ी साहित्यिक संस्थाओं ने हिंदी के उन्नयन में अत्यंत उत्कृष्ट योगदान दिए हैं। इन संस्थाओं ने साहित्यकारों के एक प्रशिक्षण–शाला तथा पोशाक–संरक्षक के दायित्व का निर्वहन किया है। इन्हीं संस्थाओं के माध्यम से विद्वानों ने साहित्यकारों की अनेक मूल्यवान पीढ़ियाँ तैयार की हैं और ये कार्य निरंतर जारी है। साहित्य मनुष्यों में ‘मनुष्यता‘भरता है। वह जीवन को मूल्यवान बनाते हुए मनुष्यों के हृदय में औरों के हित का बीज रोपता है। इसलिए यह किसी भी सभ्य–समाज का आधार और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तत्व है, जिसकी रक्षा कोई भी मूल्य देकर किया जान नितांत आवश्यक है।
यह बातें आज यहाँ बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में, सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष डा जगदीश पाण्डेय की —वीं जयंती के अवसर पर, “हिंदी भाषा और साहित्य की उन्नति में हिन्दी–सेवी संस्थाओं के योगदान विषय पर आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, डा पाण्डेय साहित्य समेत सभी सारस्वत सरोकारों से गहरे जुड़े हुए एक कोमल भावनाओं से युक्त व्यक्तित्व थे,जिन्होंने साहित्य को समाज के लिए सर्वाधिक मूल्यवान मानते हुए सदैव हीं साहित्य और साहित्यकारों के पक्ष में सदल–बल खड़े रहे। उदारता के साथ साहित्यिक–कार्यों और साहित्यकारों की सहायता में योगदान दिया। वे साहित्य की परोक्ष सेवा के लिए सदैव स्मरण किए जाते रहेंगे।
अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त ने कहा कि, पाण्डेय जी ने सीधे–सीधे साहित्य की सेवा तो नहीं की,किंतु साहित्य सम्मेलन को आड़े वक़्त में संरक्षण देकर तथा साहित्यकारों को विविध प्रकार से सहयोग हिंदी की उन्नति में बड़ा हीं महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
सम्मेलन के साहित्य मंत्री और वरिष्ठ समालोचक डा शिववंश पाण्डेय ने विषय–प्रवर्त्तन करते हुए कहा कि, हिंदी भाषा और साहित्य की उन्नति में हिन्दी–प्रेमियों के योगदान को हम भूल नहीं सकते। यद्यपि लोग ऐसे लोगों को याद नहीं रखते, क्योंकि उनके हिस्से में कोई उपलब्धि नहीं होती। डा जगदीश पाण्डेय वैसे हीं लोगों में थे, जिनके हिस्से में कोई पुस्तक नहीं है, लेकिन हिंदी के लिए उन्होंने जिस प्रकार अपना सारा खजान खोल दिया, वह असाधारण हिंदी सेवा में गिना जाना चाहिए।
संगोष्ठी के मुख्य वक़्ता हिंदी और संस्कृत के प्रख्यात विद्वान प्रो राम विलास चौधरी ने कहा कि, हिन्दी की श्रीवृद्धि और लोकप्रियता में, बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन, हज़ारों हज़ार हिंदी प्रेमियों और सैकड़ों छोटी बड़ी साहित्यिक संस्थाओं का बड़े महत्त्व का स्थान है। भारत वर्ष में अनेकों हिंदी प्रेमियों ने अपना सब कुछ वलिदान कर हिंदी की सेवा की। हिंदी के देश–व्यापी प्रचार–प्रसार के लिए अपना समस्त तन–मन–धन अर्पित कर दिया, जिन्हें श्रद्धापूर्वक स्मरण किया जाना चाहिए। डा जगदीश पाण्डेय उन्हीं आदरणीय लोगों ने से एक थे।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद,डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह, ऋषिकेश पाठक तथा डा अरुण कुमार मिश्र ने भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए।
कार्यक्रम के दूसरे खंड में कवि सम्मेलन का भी आयोजन हुआ, जिसमें वरिष्ठ कवि अमिय नाथ चटर्जी,बच्चा ठाकुर, राजकुमार प्रेमी, ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश‘,डा विनय कुमार विष्णुपुरी,डा मेहता नगेंद्र सिंह, जय प्रकाश पुजारी, प्रभात धवन, डा आर प्रवेश,ऋषिकेश पाठक, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, डा शालिनी पाण्डेय, शुभ चंद्र सिन्हा, कृष्ण मोहन प्रसाद, अर्जुन प्रसाद सिंह, राज किशोर झा आदि कवियों ने अपनी रचनाओं से समारोह में रस और रंग भरे।
इस अवसर पर, डा एच पी सिंह, प्रो सुशील कुमार झा, चंदा मिश्र, डा अंशु पाठक,शकुंतला मिश्र,नरेंद्र देव, मदन मोहन मिश्र, बाँके बिहारी साव समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्ध जन उपस्थित थे। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद ज्ञापन क्रिशन रंजन सिंह ने किया।