नलिन जी के साहित्यिक व्यक्तित्व और कृतित्व पर डा कल्याणी कुसुम सिंह की पुस्तक का हुआ लोकार्पण
आयोजित हुआ कवि-सम्मेलन
पटना, मात्र पैंतालिस वर्ष की आयु में हिन्दी के सृजनात्मक साहित्य और साहित्यालोचन को हिमालयी गरिमा प्रदान करने वाले समालोचक,आचार्य नलिन विलोचन शर्मा हिन्दी भाषा और साहित्य के महान उन्नायक और प्रतापी समीक्षक थे। उन्होंने गद्य और पद्य की प्रायः सभी विधाओं में विपुल सृजन के साथ हीं समालोचना के मानदंड स्थापित किए। परंपराओं की महान प्रवृति की रक्षा करते हुए भी, उनमें गुणात्मक परिवर्तन करने की प्रयोग–धर्मिता भी उन्मे अपने उत्कर्ष पर थी। विद्वता के वे अपराजेय कीर्ति–ध्वज थे।
यह बातें बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, विदुषी लेखिका डा कल्याणी कुसुम सिंह द्वारा, नलिन जी पर लिखित शोध–पुस्तक‘प्रज्ञ पुरुष आचार्य नलिन विलोचन शर्मा‘ के लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, लोकार्पित पुस्तक में सुबुद्ध लेखिका ने अपने सामर्थ्य–भर नलिन जी के साहित्यिक व्यक्तित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला है, जिसमें नलिन जी के प्रयोगवादी काव्य–शिल्प,कहानियाँ और उनका आलोचना–कौशल सम्मिलित है। बिहार राष्ट्र भाषा परिषद द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक साहित्य के विद्यार्थियों और सुधी पाठकों के लिए अत्यंत उपयोगी है।
इसके पूर्व पुस्तक का लोकार्पण करते हुए, पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा एस एन पी सिन्हा ने कहा कि,विदुषी लेखिका ने नलिन जी के संबंध में कई अनछुए पहलुओं को श्रम पूर्वक प्रकाश में लाया है। इस पुस्तक से नलिन जी की विराट समालोचन–प्रतिभा का परिचय मिलता है।
समारोह के मुख्य अतिथि और वरिष्ठ लेखक जियालाल आर्य ने कहा कि,नलिन जी बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार थे। उनकी विद्वता और मेधा की तुलना करना संभव नही था। वे महान साहित्यकार,महान संपादक और महान शिक्षक भी थे।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त, डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, डा भूपेन्द्र कलसी, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, अंबरीष कांत, श्रीकांत सत्यदर्शी, डा मेहता नगेंद्र सिंह तथा डा विनय कुमार विष्णुपुरी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि–सम्मेलन का आरम्भ कवयित्री शकुंतला मिश्र की वाणी–वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि घनश्याम ने अपनी ग़ज़ल पढ़ते हुए कहा कि, ” अपाहिज आस्थाएँ दौड़ती तक़दीर के पीछे/ मगर तक़दीर चलती है सदा तदवीर के पीछे“। आरपी घायल का कहना था कि “वफ़ा की राह में रोड़ा बिछाना काम है जिनका/ वफ़ा की जीत भी उनको वफ़ा की मात लगता है/ जिसे मैं देख लेता हूँ बिना देखे भी हर लम्हा/उसी की याद में खोयी हुई हर रात लगती है“। आचार्य विजय गुंजन ने गीत को स्वर दिया कि, “ आ क्षितिज पर उगा चाँद भी हँस लगा छीटने चाँदनी/ और मन दमकने लगी सैकड़ों आस की दामिनी“।
वरिष्ठ कवयित्री डा सीमा यादव,वीणाश्री हेंब्रम,मधुरेश नारायण, देव राज शर्मा, कुमारी स्मृति, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, नेहा नपुर, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, नसीम अख़्तर, शुभ चंद्र सिन्हा, सरोज तिवारी,डा शालिनी पाण्डेय,पुष्पा जमुआर, जय प्रकाश पुजारी, राधे श्याम मिश्र, नूतन सिन्हा, उमा शंकर सिंह, सुनील कुमार,प्रतिभा प्रासर,अर्जुन प्रसाद सिंह,राज किशोर झा तथा डा नरेश प्रसाद ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया।
अतिथियों का स्वागत सम्मेलन के प्रधान मंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने तथा धन्यवाद ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया।