बदलते समय के साथ विधान मंडल के सदस्यों के आचरण  में इतना परिवर्तन हो जायेगा , किसे पता था? क्या विपक्ष, क्या पक्ष अब तो वही विधायक चर्चित होते हैं जो हुल्लड़बाज होते हैं, न कि अच्छे वक्ता या प्रश्नकर्ताASSEMBLY ME BJP KA PARDARSHAN

 

बिहार विधान मंडल की चर्चा अब सारगर्भित भाषण, सार्थक बहस और महत्वपूर्ण विधायी कार्यों के लिए नहीं होती है। अब यह चर्चा नहीं होती है कि विधानसभा या विधान परिषद में बढ़िया वक्ता कौन है? सबसे बढ़िया और तर्क पूर्ण जवाब कौन मंत्री कौन देता है? सरकार को अनुत्तरित कर देने वाला सवाल कौन पूछता है?

 

अब विधानमंडल की कार्यवाही की चर्चा होने पर लोग पूछते हैं कि सबसे ज्यादा हंगामा कौन करता है? वेल में आने का सबसे बढ़िया रिकार्ड किसका है? सबसे बड़ा नौटंकीबाज कौन हैं? विधानमंडल सत्र के दौरान प्रकाशित समाचार पत्रों को देख लें, किसी में विविधता नजर नहीं आएगी।

 

सदन में हंगामा और गेट पर प्रदर्शन, यही रुटिन बन गया है विधानमंडल का। शर्मसार करने वाली स्थिति यह है कि अब लोग सदन में भी प्ले कार्ड और पोस्टर  लेकर पहुंचते हैं।

 

यह स्थिति दोनों पक्षों की है। सदन के अंदर भी सत्ता और विपक्ष का अंतर समाप्त हो गया है। अंतर बस सीट का रह गया है।  कार्यव्यवहार, कार्यशैली, अराजकता फैलाने में कोई अंतर नहीं रह गया है। दोनों पक्ष एक-दूसरे पर अमर्यादित आचरण करने का आरोप लगाते हैं। लेकिन मर्यादा क्या है? यह कोई नहीं बताता है। मर्यादा का निर्धारण तो सभापति और अध्यक्ष भी नहीं कर पाते हैं।

 

विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने सदन की मर्यादा और कार्यवाही के सुचारू संचालन के लिए बुधवार को सर्वदलीय बैठक भी बुलायी थी, लेकिन वह भी आरोप-प्रत्यारोप के बीच बिना नतीजा समाप्त हो गयी।

 

अब सदन की कार्यवाही देखकर लगता है कि वहां पोस्टर युद्ध हो रहा है। दोनों पक्ष के लोग एक-दूसरे को पोस्टर दिखाते हैं। पोस्टरों के आकार में भी प्रतियोगिता होती है। वैसे में यह सवाल स्वाभाविक रूप से उठता है कि क्या विधानमंडल का जनसरोकार समाप्त हो गया है?

 

विधायकों का दायित्व हंगामा करने तक सीमित हो गया है। अब विधायकों को भी मंथन करना चाहिए कि वह जो कर रहे हैं, क्या इसी काम के लिए चुने गए हैं। अब विधानमंडल की कार्यवाही की समीक्षा होनी चाहिए कि क्या वह सिर्फ विधायकों के भत्ते के लिए होती है या उसका कोई विधायी औचित्य भी है? अब इस मुद्दे पर समग्र बहस की जरूरत है, तभी लोकतंत्र और विधानमंडल की मर्यादा सुरक्षित रह सकती है।

By Editor


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