नीतीश कुमार 19 फरवरी को भोज आयोजित कर रहे हैं. उनका भोज अकसर सियासी कोहराम को जन्म देता है. एक बार उन्होंने आडवाणी सरीखे नेताओं के हाथ से थाली खीची थी तो इसबार मांझी की कुर्सी छिनने पर आमादा हैं.
मांझी सरकार का भविष्य तय होने की घड़ियां जैसे-जैसे नजदीक आरही हैं वैसे-वैसे सियासी भोज की तीव्रता भी बढ़ती जा रही है. आज जद यू एमएलसी विनोद के यहां भोज है तो कल वशिष्ठ नारायण के यहां और फिर खुद नीतीश कमार 19 फरवरी को मुर्ग-पुलाव के इंतजाम में जुटे हैं.
बिहार में राजनीतिक गहमा-गहमी के बीच सियासी भोज की पुरानी परम्परा रही है. सियासी भोज कभी अपने मुखालिफों को पस्त करने का आखाड़ा साबित होता है तो कभी राजनीतिक मेहमानों के हाथ से थाली छीन कर भी रणनीति साधी जाती है. थाली छीनने का उदाहरण कुछ साल पहले तब काफी चर्चा में आया जब तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा के वरिष्ठतम नेताओं के लिए रखा भोज तब अचानक कैंसिल कर दिया जबकि राजनीतिक मेहमान पटना पहुंच चुके थे. इन में आडवाणी सरीखे नेता भी थे.
लेकिन इस बार नीतीश कुमार द्वारा आयोजित भोज का मकसद थाली छीनने के बजाये, मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के हाथ से कुर्सी छीनने की है.
पिछले एक महीने में जद यू के अनेक नेताओं-विधायकों ने अब तक अलग अलग भोज का आयोजन कर लिया है.
लगातार तीन दिन भोज
20 फरवरी को मुख्यमंत्री के शक्ति परीक्षण से एक दिन पहले तक तीन भोजों का आयोजन किया गया है. 17 फरवरी को एमएलसी विनोद कुमार के आवास पर डिनर है तो 18 को जद यू के स्टेट प्रसिडेंट वशिष्ठ नारायण के आवास पर मटन-चिकन की दावत है. दावतो का यह सिलसिला 19 को तब समाप्त होगा जब 7 सर्कुलर रोड पर जद यू के सबसे ताकतवर नेता नीतीश कुमार भोज का आयोजन करेंगे.
इस प्रकार मटन-चिकन खाने के बाद ही सदन में शक्ति परीक्षण के लिए विधायकों की टोली 20 को पहुंचेगी. इन तमाम भोजों की खास बात यह है कि इनमें भोज खिलाने वाले नेता को जितना बड़ा कद है, उतने बड़े नेताओं को ही आमंत्रित किया गया है. लेकिन नीतीश की दावत में समझा जाता है कि लालू प्रसाद भी रह सकते हैं. वैसे पत्रकारों के लिए सुकून की बात यह है कि वे तमाम दावतों के जायकों का टेस्ट करने को आजाद होंगे.
गौरतलब है कि मांझी को आठ महीने पहले नीतीश कुमार ने ही मुख्यमंत्रीं बनवाया लेकिन अब नीतीश के नेतृत्व में जद यू ने मांझी से अविश्वास जता दिया है. इसलिए 20 फरवरी को असेम्बली में मांझी अपना बहुमत साबित करेंगे. हालांकि मांझी के हिमायती नरेंद्र सिंह दावा कर रहे हैं कि उनकी सरकार भाजपा के सहारे बच जायेगी लेकिन दूसरी तरफ भाजपा इस मामले में पर जबर्दस्त ऊहापोह की हालत में है. उसने अभी तक तय नहीं किया है कि वह क्या करने वाली है. अब 20 को ही पता चलेगा कि क्या होगा.
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