राजद प्रमुख लालू यादव व जदयू नेता नीतीश कुमार दो दशक तक दुश्मनी निभाने के बाद अब दोस्ती के आतुर हैं। दो दशक तक एक-दूसरे की बर्बादी के सूत्र गढ़ते रहे, लेकिन जब भाजपा ने दोनों की जड़ एक साथ ही खोद दी तो दोनों एकजुट हो गए हैं।
मनोज अग्रवाल
जब लालू प्रसाद यादव ने 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली तो दोनों के बीच राजनीतिक लव स्टोरी चल रही थी, दोनों पक्के दोस्त थे। यहां तक कि 1990 में नीतीश कुमार लालू यादव के दाहिना हाथ हुआ करते थे। लालू को मुख्यमंत्री बनाने के लिए उन्होंने पटना में तो शरद यादव ने तो दिल्ली में लामबंदी की थी। किन्तु 1994 में लालू के प्रशासन के तौर तरीके को लेकर दोनों के बीच स्टोरी का दूसरा पार्ट यानी कि हेट स्टोरी शुरु हो गया।
इसके बाद नीतीश ने जनता दल छोड कर जॉर्ज फर्नांडीस व दिग्विजय सिंह के साथ समता पार्टी की स्थापना की। इसके बाद से दोनों के बीच नफरत की राजनीति परदे पर ज्यादा नजर आने लगी। एक-दूसरे के पूरक रहे लालू-नीतीश अब बिहार की राजनीति के दो अलग-अलग धुरी हो गये। दोनों के बीच राजनीतिक कड़वाहट काफी बढ़ गयी, हालांकि निजी व पारिवारिक संबंध कायम रहे।
लालू के खिलाफ 1995 में लड़े पहले चुनाव में नीतीश की पार्टी को जबरदस्त हार मिली। यहां तक कि उनके राजनीतिक भविष्य पर भी सवाल उठाये जाने लगे। लेकिन नीतीश ने हार नहीं मानी। उनके पास जॉर्ज जैसे राष्ट्रीय चेहरा व बिहार की राजनीति में अगड़ों को लुभाने के लिए दिग्विजय जैसा चेहरा था। लालू की मजबूत पकड़ को चुनौती देने के लिए भाजपा व समता ने गठबंधन किया। नीतीश ने चुनाव में लालू के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर जनता का दिल जीतने का कोई कसर नहीं छोडी। इसमें लालू का चारा घोटाले में आरोप नीतीश के लिए रामबाण साबित हुआ। और 2005 में भाजपा के सहयोग से नीतीश बिहार के सीएम की कुर्सी पर विराजमान हुए। लेकिन कुछ मुद्दों को लेकर नीतीश को भाजपा भी रास नहीं आयी और लोक सभा के पहले 2013 में नीतीश ने भाजपा से अलग होने की घोषणा कर दी। 2014 के लोकसभा चुनाव में नीतीश की पार्टी को करारी हार मिली। और बदले राजनीतिक हालात में नीतीश ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया।
लालू-नीतीश की लव-हेट स्टोरी का यह इंटरवल हुआ। इसके बाद से स्टोरी आगे बढ़ती है और एक नया मोड़ लेती है। बिहार में विधानसभा के 10 सीटों के लिए उपचुनाव होने हैं। लोकसभा चुनाव में बुरी पराजय से सबक लेती हुई भाजपा विरोधी पार्टियों ने एक रणनीति बनायी और इस उपचुनाव में भाजपा को महापराजय देने के उद्देश्य से महागठबंधन कर लिया। अब लालू-नीतीश की स्टोरी फिर से लव स्टोरी बन गयी। लालू-नीतीश का फिर से गठबंधन हो गया। लेकिन इस स्टोरी का क्लाइमेक्स यह रहा कि इसमें एक बडी और थर्ड पार्टी कांग्रेस भी शामिल हो गयी। आरजेडी-जेडी(यू)-कांग्रेस महागठबंधन। अभी स्टोरी का अंत यहां हुआ नहीं है। इस लव-हेट स्टोरी का रिजल्ट क्या होगा इसका कुछ एहसास तो इस उपचुनाव में ही हो जाएगा, लेकिन स्टोरी के एंड रिजल्ट के लिए बिहार में अगले साल विधानसभा के होने वाले आमचुनाव तक इंतजार करना होगा।