4 दिनों में मुस्लिम विरोधी 3 घटनाएं, अब रिक्शावाले को पीटा

यह न्यू इंडिया है। पिछले 4 दिनों में मुस्लिम विरोधी 3 घटनाएं हुईं। अब कानपुर में रिक्शावाले को जयश्रीराम का नारा लगाने को बाध्य किया। पीटा।

यूपी चुनाव में कुछ ही महीने रह गए हैं। इस बीच पिछले चार दिनों में मुस्लिम विरोधी तीन घटनाएं हुईं। 8 अगस्त को दिल्ली के जंतर-मंतर पर खुलेआम एक समुदाय विशेष के खिलाफ हिंसा के नारे लगे। कल मुजफ्फरनगर में कुछ लोगों का वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वे मुस्लिम मेहंदी आर्टिस्ट से तीज पर हिंदू महिलाओं को महंदी न लगाने की धमकी दे रहे थे। अब कानपुर का मामला सामने आया, जिसमें एक रिक्शावाले को जबरन जयश्रीराम का नारा लगाने को बाध्य किया गया। उसे पीटा गया।

पहली घटना में भाजपा के पूर्व प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय को पुलिस ने गिरफ्तार किया, लेकिन उसे 22 घंटे में ही बेल मिल गया। दूसरी मुजफ्फरनगर की घटना में राष्ट्रीय लोकदल ने पुलिस के समक्ष विरोध जताया है। ट्वीट में कहा-हरियाली तीज पर साम्प्रदायिक तत्वों द्वारा माहौल ख़राब करने के विरोध में राष्ट्रीय लोकदल के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं ने पुलिस अधीक्षक से वार्ता की। साम्प्रदायिक तत्वों के विरुद्ध मुक़दमा दर्ज किया गया है। जल्द गिरफ़्तारी होगी!

अब आज तीसरी घटना कानपुर की है। यहां दो पड़ोसी कुरैशी और रानी के परिवार में बाइक टकराने को लेकर तकरार हुई। कुरैशी के परिवार ने रानी के परिवार पर एफआईआर दर्ज कराई। फिर रानी के परिवार ने भी पुलिस में शिकायत की। इसी बीच आज बजरंग दल के लोग पहुंच गए और कुरैशी के नहीं मिलने पर उसी परिवार के अफसार को पीटने लगे। अफसार पर जयश्रीराम का नारा लगाने को बाध्य किया गया। बाद में पुलिस ने भीड़ से उसे बचाया। भीड़ जब उसे पीट रही थी, तब उसकी छोटी बच्ची उससे लिपट कर रो रही थी, पर इससे भी बजरंग दल के लोगों का दिल न पसीजा।

एनडीटीवी के पत्रकार कमाल खान ने वीडियो जारी किया और लिखा-कानपुर में एक मुस्लिम रिक्शेवाले को पीटते और “जयश्रीराम” बुलवाते हुए सड़क पे घुमाया गया।उसकी डरी हुई बच्ची उससे लिपट कर रोती रही।रिक्शेवाले का कोई गुनाह नहीं।उसकी भाभी का अपनी हिन्दू पड़ोसन से कुछ बाइक लड़ जाने का झगड़ा है।पुलिस ने एफ़ आई आर की है।

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लेखक अशोक कुमार पांडेय ने ट्वीट किया-रोज़ उत्तरप्रदेश से नफ़रती घटनाओं की ख़बरें आ रही हैं लेकिन अखिलेश यादव जी और मायावती जी के बयान तक नहीं दिखते, अल्पसंख्यक वर्ग के पीड़ितों के घर जाते कभी नहीं दिखते ये लोग। आख़िर क्यों!

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