जयंती पर बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में आयोजित हुआ कवि–सम्मेलन
पटना,९ मई। अपने युग की साहित्यिक और सांस्कृतिक चेतना को दिशा और दृष्टि प्रदान करने वाले युग–प्रवर्त्तक साहित्यकार थे महावीर प्रसाद द्विवेदी। हिन्दी भाषा और साहित्य के महान उन्नायकों में उन्हें आदर के साथ परिगणित किया जाता है। उनके विपुल साहित्यिक अवदान के कारण हीं,उनके साहित्य–साधना के युग को हिंदी साहित्य के इतिहास में ‘द्विवेदी–युग‘के रूप में स्मरण किया जाता है। वे एक महान स्वतंत्रता–सेनानी,पत्रकार और समालोचक थे।
यह बातें गुरुवार की संध्या,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में द्विवेदी जी की १५५वीं जयंती पर आयोजित समारोह और कवि–सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि,आधुनिक हिन्दी को,जिसे खड़ी बोली भी कही गई, महान साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चिचंद्र ने अंगुली पकड़ कर चलना सिखाया तो यह कहा जा सकता है कि द्विवेदी जी के काल में वह जवान हुई। आधुनिक हिन्दी को गढ़ने में असंदिग्ध रूप से आचार्यवर्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का अद्वितीय अवदान है।
जयंती पर कवि सम्मेलन
इस अवसर पर अपना विचार व्यक्त करते हुए, वरिष्ठ साहित्यकार प्रो वासुकीनाथ झा ने कहा कि, हिन्दी भाषा और साहित्य के उन्नयन में आचार्य द्विवेदी का योगदान अद्वितीय और महनीय है। उन्होंने साहित्यिक पत्रिका ‘सरस्वती‘के माध्यम से हिन्दी का महान यज्ञ आरंभ किया। उन्होंने ‘अनुवाद‘को एक बड़े उपकरण के रूप में उपयोग किया। विभिन्न भाषाओं की मूल्यवान कृतियों का अनुवाद कर हिन्दी का भंडार भरा।
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अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त ने कहा कि, आधुनिक हिन्दी का इतिहास और इस पर की जाने वाली कोई भी चर्चा,द्विवेदी जी के नाम लिए बग़ैर पूरी नही हो सकती। सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, डा मेहता नगेंद्र सिंह तथा डा विनय कुमार विष्णुपुरी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि–सम्मेलन का आरंभ कवयित्री चंदा मिश्र की वाणी–वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि डा शंकर प्रसाद ने कहा कि, “हिज़्र की रात बड़ी लम्बी कहाँ कटती है/ दूरियाँ काम न हुई बाक़ी है कुर्बत का सफ़र/बाखुदा ख़ुद पे नहीं ज़ोर कोई चलता है/ मुझको मजबूर करे हाय मुहब्बत का सफ़र“।
कवि घन श्याम का कहना था कि, “वक़्त देता है जब दगा बिल्कुल/ टूट जाती है फिर वफ़ा बिल्कुल/ वो सियासत वतन को क्या देगी/हो गई है जो बहाया बिल्कुल“। कवयित्री डा सुधा सिन्हा ने कहा – “बहुत प्यार करते हैं, तेरा इंतज़ार करते हैं/ तुम चाहो न चाहो, खाबों में मिला करते हैं“। डा सविता मिश्र ‘मागधी‘ने अपनी रचनाओं में लोक–कल्याण की विराट भावना को इन पंक्तियों में सवार दिया कि “फूल तुम खिलो, ख़ूब खिलो/फैला दो अपनी सारी ख़ुशबू/ महक जाए जिससे धरा का तन मन/ और छोड़ जाओ मेरे पास सारे काँटें“। रेखा भारती का कहना था कि, “तुम आओ या न आओ, मैं इंतज़ार करूँगी/ आके खाबों में इश्क़ का इज़हार करूँगी“
कवि डा दिनेश दिवाकर, डा राम गोपाल पाण्डेय, महानंद शर्मा, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, कामेश्वर कैमुरी, अनुपमा नाथ, लता प्रासर,शुभ चंद्र सिन्हा,डा आर प्रवेश, अर्जुन प्रसाद सिंह, शंकर शरण आर्य, डा शालिनी पाण्डेय, चंद्र प्रकाश ‘तारा‘तथा नीरव समदर्शी ने भी अपनी रचनाओं से श्रोताओं की वाहवाहियाँ बटोरी। धन्यवाद ज्ञापन सम्मेलन के प्रबंधमंत्री कृष्णरंजन सिंह ने तथा मंच का संचालन राज कुमार प्रेमी ने किया।