‘अदब-ए-मौसिकी’ संगीत महोत्सव के दूसरे दिन संगीतमय प्रस्तुतियों और संगीत पर गंभीर चर्चा का अद्भुत समागम देखने को मिला। शास्त्रीय संगीत की मधुर प्रस्तुति और संगीत-विमर्श के साहित्य पर आधारित यह दो दिवसीय कार्यक्रम आज समाप्त हो गया।
आज कार्यक्रम की शुरुआत निशांत मल्लिक और कौशिक मल्लिक द्वारा दरभंगा घराने के ध्रुपद गायन से हुई। दोनों ने राग परमेश्वरी और कबीर के पद ‘राम नाम में जो मूल हैं कहे कबीर समझाय’ की मनमोहक प्रस्तुति दी।
नजाकत, रिवायत, अदा के सत्र में ठुमरी, गजल और तवायफ परंपरा’ में प्रसिद्ध संगीत लेखक अरुण सिंह, अखिलेश झा और विद्या शाह ने शिरकत की, जबकि शंकर कुमार झा ने सत्र का संचालन किया। विद्या शाह ने भारतीय संगीत परंपरा में तवायफ़ों के योगदान पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारतीय संगीत की कई विधां तवायफ़ों के जरिए ही विकसित और संरक्षित हुई हैं। अरुण सिंह ने तवायफ परंपरा के प्रसिद्ध कलाकारों की चर्चा करते हुए कहा कि तवायफ़ों के मानवीय मूल्य बहुत ऊंचे दर्जे के रहे हैं ।
देवप्रिया और देवदासी सत्र में देवदासी परंपरा के संगीत की चर्चा हुई, जिसमें बतौर वक्ता पवन कुमार वर्मा और सवर्णमाल्य गणेश उपस्थित रहे। पवन कुमार वर्मा ने देवदासी परंपरा की ऐतिहासिकता की चर्चा की और इसके संगीत पक्ष को स्पष्ट किया। घराना: फ्रॉम वेयर दी म्यूजिक फ्लोस सत्र में इरफान ज़ुबैरी, मीता पंडित , पद्मातलवाकर, अनीस प्रधान और अजित प्रधान ने भारतीय संगीत की घराना परंपरा पर चर्चा की। डॉ अजीत प्रधान ने कहा कि घराना परंपरा ने संगीत की धरोहर को आगे जरूर बढ़ाया, पर परिवारवाद होने के कारण कई बार अयोग्य लोग भी घराना परंपरा में शामिल रहे, जिसका नुकसान संगीत को उठाना पड़ा। अनीश प्रधान ने घराना परंपरा की विचारधारा की बात की और कहा कि पलायन और प्रवर्जन के कारण घरानों का विस्तार अलग अलग क्षेत्रों में हुआ। उन्होंने कहा कि भारतीय संगीत में घराने आत्मा के समान हैं। मीता पंडित ने कहा कि ‘घराने’ घर का पर्याय न बन जाएं, इस से बचने के लिए ‘परंपरा’ शब्द का इस्तेमाल बेहतर है।
नमिता देवीदयाल ने कहा कि संगीत पर लिखने वाले व्यक्ति को संगीतकार के आत्मा को पढ़ना पड़ता है। अनीश प्रधान ने कहा कि संगीत पर लिखने वाले व्यक्ति को उस समाज उस राज्य के कानून और धर्म को समझना जरूरी होता है। अखिलेश झा ने मेहंदी हसन पर लिखी किताब ‘मेरे मेहंदी हसन’ के बारे में श्रोताओ को बताया। नमिता देवीदयाल ने कहा कि संगीत पर लिखने वालों को संगीत सभी पक्षों पर काम करना जरूरी हो गया है। दो दिनों के इस कार्यक्रम में पटना के श्रोताओं भी आनंद उठाया और नयी-नयी जानकारी से अवगत हुए।