सिनेमा हॉल खुल रहे हैं, मुशायरों पर भी रोक हटे
एडवांटेज केयर वर्चुअल डायलॉग सीरीज में इस बार देश के ख्यातिप्राप्त शायर जुटे। शायरी से पहले ‘मुशायरों व कवि गोष्ठियों पर कोविड के दुष्प्रभाव’ पर चर्चा हुई।
शायरी से पहले ‘मुशायरों व कवि गोष्ठियों पर पड़े कोविड के दुष्प्रभाव‘ विषय पर चर्चा हुई। शायरा शबीना अदीब ने कहा कि हम साहित्यकार व कलाकार बहुत बुरे दौर से गुजर रहे हैं। हम अपने तमाम गम को भूलाकर आवाम का मनोरंजन करते हैं। ऐसे में आवाम व जिम्मेदारों को भी हमारे बारे में सोचना चाहिए। कई कलाकारों की पांच-10 हजार रुपए में जीवनयापन हो जाता है। इसी तरह चरण सिंह बशर ने कहा कि कोरोना की वजह से जो हालात बने हैं उससे पूरी दुनिया मुत्तासिर हुई है।बहरहाल, इसमें कोई शक नहीं है कि जो उर्दू अदब पर शायरों ने काम किया। ऐसे में शायरों की ओर सरकार की नजर जानी चाहिए थी। लेकिन नहीं गई।
इसी तरह जौहर कानपुरी ने कहा कि तमाम बिजनेस वालों ने अपनी बात कही। उनको मदद भी मिली।
अब उनको बिजनेस करने की आजादी भी मिल गई है। लेकिन हम शायर भूखे रह सकते हैं लेकिन हाथ नहीं फैला सकते। वहीं अहमद दानिश ने कहा कि फिल्मों देखने के लिए 50 प्रतिशत सीट पर बिठाने के साथ छूट दी गई, तो मुशायरों के लिए क्यों नहीं हो सकता। 40 हजार करोड़ मनोरंजन सेक्टर को नुकसान होने की बात कही जाती है लेकिन मुशायरा की बात नहीं होती है। इसके नुकसान की बात नहीं होती है। कार्यक्रम में कोविड काल में गुजर चुके शायरों को श्रद्धांजलि दी गई। कार्यक्रम के शुरुआत में जाने माने सर्जन डॉ. एए हई ने सभी को संबोधित किया।
तुझे आरजू थी जिसकी वही प्यार ला रही..: शबीना अदीब
दिल अपना इश्क से आबाद कर के देख कभी, मेरी तरह तू मुझे याद कर के देख कभी। तेरी मदद को फरिश्ते उतर कर आएंगे, किसी गरीब की इमदाद कर के देख कभी। तुझे आरजू थी जिसकी वही प्यार ला रही हूं, मेरे गम में रोनेवाले तेरे पास आ रही हूं। मुझे देखना है किससे मेरा शहर होगा रौशन, वो मकान जला रहे हैं, मैं दीये जला रही हूं…
ये रचना शायरा शबीना अदीब ने जब एडवांटेज केयर वर्चुअल डायलॉग सीरीज के 10 वें एपिसोड में रविवार को सुनाई तो मुशायरे में शामिल दूसरे शायर भी वाह-वाह कर बैठे। फिर क्या था मैसेज बॉक्स में एक और रचना सुनाने की गुहार की झड़ी लग गई। शबीना भी अपने चाहनेवालों को निराश नहीं किया और कई रचनाएं सुनाई। …नफरतों के सफर में अंधेरे प्यार की राह में रौशनी है। जो मोहब्बत के साए में गुजरे बस वही जिंदगी, जिंदगी है। भूल बैठा जो कभी खुदा को, उसको झुकना पड़ा सब के आगे। जिसने सर उसके आगे झुकाया, उसके कदमों पर दुनिया पड़ी है….।
शाम पांच से सात बजे तक जमी महफिल में बिहार के अलावा दूसरे राज्यों शायरी और गजल पसंद करनेवाले लोग जुड़े थे। कार्यक्रम संचालन पत्रकार गौहर पीरजादा कर रहे थे।
शायरों का दिल की गहराईयों से शुक्रिया एवं स्वागत: डाॅ. ए.ए. हई
एडवांटेज सपोर्ट के इस कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए शायरों का दिल की गहराईयों से शुक्रिया अदा करते हैं और स्वागत करते हैं। कोविड की इस दर्दनाक दौर में खुर्शीद जी का यह प्रयास मरहम का काम करेगा। डाॅ. ए.ए. हई ने परिचर्चा के दौरान फैज अहमद फैज का एक षेर भी सुनाया। उन्होंने कहा षायर का दिल समाज के प्रति काफी संवेदनशील होता है। उन्होंने कहा कि एक शायर ने मुझे बताया था कि षायरी में तीन चीजें होनी जरूरी होती है, संदेष, लय और मिश्रा।
कोरोना और मानव में की तुलना: चरण सिंह बशर
मुशायरे में शायर चरण सिंह बशर ने वैसे तो कई रचनाएं सुनाई, लेकिन कोरोना को केंद्र में रखकर रची रचना को काफी पसंद किया गया। उन्होंने सुनाया, ‘‘ठहरे अजाब ए जलजला तो ये पता चले, कितने दरख्त अपनी जड़ों से उखड़ गए। खालिक है तू, राजिक है तू, मालिक है तू, मौला है तू हम अपनी अना के नशे में ये भूल गए क्या है तूय हम खुशफहमी में डूबे थे, खुद को होशियार समझते थे। हम इल्म पर अपने सादा थे, तहकीक के अपनी नाजा थे। एक नादीदा दुश्मन ने हमे औकात हमारी बतला दी….‘‘।
अपने और अपनों के गम से आदमी बेहाल था, अस्पतालों में तो हमदर्दी का जैसे काल था: जौहर कानपुरी
जौहर कानपुरी ने भी वर्तमान स्थिति पर अपनी रचनाओं के माध्यम से वार किया और एक संदेश दिया। उन्होंने कोरोना के दूसरी लहर के दौरान अमानवता दिखाने वाले मेडिकल दुकानदारों की आलोचना की। उन्होंने सुनाया, ‘‘तख्त पर ईमा सजें है गर्म कारोबार है, जिसको हम दरबार समझे थे, वो एक बाजार है। जिसको यह कह कर चुना था साहिब ए किरदार है, चंद सिक्कों में वह बिकने को तैयार हैं….। अपने और अपनों के गम से आदमी बेहाल था, अस्पतालों में तो हमदर्दी का जैसे काल था। और मसीहा भी कहीं एहसास से कंगाल था जो था सौदागर दवाओं का वो मालामाल था। वो जो सीने में था वो सामान भी बेचा गया, मेडिकल स्टोर में ईमान भी बेचा गया….‘‘
कार्यक्रम में दो युवा शायर अहमद दानिश और कासिफ अदीब भी शामिल हुए। कासिफ अदीब ने अपनी रचना, ‘‘ था जहां को यही मंजूर चलो अच्छा है, आप भी हम से हुए दूर चलो अच्छा है। तू गया है तो जाने भी तेरे साथ गए, जिंदगी हो गई बेनूर चलो अच्छा है। काम सब बंद हुए होत हाथों यारों, कोई मालिक है न मजदूर चलो अच्छा है…‘‘ सुनाई। इसी तरह शायर अहमद दानिश ने, ….मैं हूं एक मजदूर वतन का, भूखा रहने पर मुझको क्यों किया मजबूरय कैसे ये बीमारी फैली सब इंसान हैं नर्वस, मौत खड़ी है दरवाजे, घर में लोग हैं बेबस। बंद हुआ सब धंधा-पानी, बंद कमाई के सब दर….हम जैसे मजदूर तो मर जाएंगे भूखे रहकर… सुनाया।
शायरों के सपोर्ट के लिए आगे आने की जरूरत: खुर्शीद अहमद
एडवांटेज केयर के संस्थापक खुर्शीद अहमद ने कहा कि शायरों के परेशानियों को देखते हुए यह एक छोटी सी पहल है। उम्मीद है कि इस पहल से संस्था को सरकार एवं लिटरेरी फेस्टिवल करने वाली संस्था द्वारा मदद मिलनी चाहिए। इस इंडस्ट्री को सभी को मिलकर बचाना होगा। सभी को सपोर्ट मिल रहा है इनको भी मिलना चाहिए। जिस तरह शादियां हो रही हैं, फंक्शन हो रहे हैं उसी तरह इन लोगों का भी प्रोग्राम प्रोटोकाॅल का पालन करते हुए होना चाहिए। जैसा कि दुसरे देशों में हो रहा है। क्योंकि षायर लोग स्वाभिमानी होते हैं भूखे रह सकते हैं लेकिन हाथ नहीं फैला सकते। इसलिए इन्हें इज्जत देनी होगी। सरकार को आगे आना होगा। इसमें सभी संस्था को सपोर्ट के लिए आगे आना होगा जैसे रेक्ता, एडवांटेज लिटरेरी फेस्टिवल, पटना लिटरेरी फेस्टिवल, जयपुर लिटरेरी फेस्टिवल, कोलकाता लिटरेरी फेस्टिवल, मुम्बई लिटरेरी फेस्टिवल जैसी संस्था को आगे आना होगा और इनको और इनकी षायरी को बचाना होगा। यह वक्त आगे आने का है और मदद करने का है।