अखिलेश व मायावती में तल्ख हुए रिश्ते, किसे फायदा, किसे नुकसान
अखिलेश व मायावती में तल्ख हुए रिश्ते, किसे फायदा, किसे नुकसान। अखिलेश ने मायावती पर उठाए सवाल, तो मायावती ने भी खुल कर सपा का किया विरोध।
2024 लोकसभा चुनाव की दृष्टि से उत्तर प्रदेश का बड़ा महत्व है। यहां लोकसभा की 80 सीटें हैं। वोटों का गणित बता रहा है कि अगर सपा, बसपा, कांग्रेस तथा रालोद चारों दल मिल कर चुनाव लड़ेंगे, तो अकेले यूपी ही भाजपा को बहुमत से नीचे ला सकता है। 2019 में भाजपा ने 303 सीटें जीती थीं। सिर्फ तीस सीटें तम हो गईं, तो भाजपा बहुमत से नीचे आ जाएगी। इस स्थिति में सपा और बसपा की आपसी तनातनी इंडिया गठबंधन के लिए चिंता का विषय है। भाजपा यही चाहती है कि मुकाबला एक के सामने एक न हो, बल्कि तिकोना हो। तिकोने मुकाबले में भाजपा की राह आसान हो जाएगी। इसती नादाधारण बात को भी न सो तपा समझने को तैयार है और न ही बसपा।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव से जब पत्रकारों ने बसपा को इंडिया गठबंधन में लाने के संबेध में सवाल किया, तो उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव के बाद बसपा भाजपा के साथ नहीं जाएगी, इसकी कौन गारंटी लेगा। अब आज बसपा प्रमुख मायावती ने सपा को अतिपिछड़ा और दलित विरोधी कहते हुए हमला बोल दिया। यहां तक कि उन्होंने अपनी जान पर भी खतरा बताया। सवाल है इस स्थिति में तो दोनों का साथ आना मुश्किल है और दोनों भाजपा की राह आसान कर देंगे।
मायावती ने सोमवार को कहा कि सपा अति-पिछड़ों के साथ-साथ जबरदस्त दलित-विरोधी पार्टी भी है, हालाँकि बीएसपी ने पिछले लोकसभा आमचुनाव में सपा से गठबन्धन करके इनके दलित-विरोधी चाल, चरित्र व चेहरे को थोड़ा बदलने का प्रयास किया। लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद ही सपा पुनः अपने दलित-विरोधी जातिवादी एजेंडे पर आ गई। और अब सपा मुखिया जिससे भी गठबन्धन की बात करते हैं उनकी पहली शर्त बसपा से दूरी बनाए रखने की होती है, जिसे मीडिया भी खूब प्रचारित करता है। वैसे भी सपा के 2 जून 1995 सहित घिनौने कृत्यों को देखते हुए व इनकी सरकार के दौरान जिस प्रकार से अनेकों दलित-विरोधी फैसले लिये गये हैं।
मायावती 2019 चुनाव में जून, 1995 वाली घटना भूल कर सपा के साथ गई थीं, लेकिन इस बार वे फिर से पुराने घाव ताजा कर रही हैं। उन्होंने अपनी जान पर भी सपा के कारण खतरा बताया। कहा कि बीएसपी यूपी स्टेट आफिस के पास सपा ने ऊँचा पुल बनाया। जहां से षड्यन्त्रकारी अराजक तत्व पार्टी दफ्तर, कर्मचारियों व राष्ट्रीय प्रमुख को भी हानि पहुँचा सकते हैं जिसकी वजह से पार्टी को महापुरुषों की प्रतिमाओं को वहाँ से हटाकर पार्टी प्रमुख के निवास पर शिफ्ट करना पड़ा।
अब देखना है कि अंतिम समय में सपा बसपा एक साथ आते हैं या आपस में लड़ कर भाजपा की मदद करते हैं। हालांकि अब भी एकता की उम्मीद करने वाले निराश नहीं हैं।
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