सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जमान पर पटक दिया है। दोनों 80 में 80 का दावा कर रहे थे, लेकिन अब तक के रुझान से स्पष्ट है कि वह आधी सीटें भी नहीं ला पा रही है। उधर अखिलेश यादव नए नायक के रूप में उभरे हैं। उन्होंने सारे एक्जिट पोल और विशेषज्ञों को गलत साबित कर दिया। खबर लिखे जाने तक यूपी में इंडिया गठबंधन 46 सीटों पर आगे है, जबकि एनडीए 34 सीटों पर आगे दिख रहा है।
अखिलेश यादव ने जिस प्रकार मुद्दे उठाए, प्रत्याशियों का चयन किया और कांग्रेस के साथ जैसी शानदार केमेस्ट्री बनाई, उससे भाजपा अपने सबसे मजबूत किले में बुरी तरह मार खा गई।
उप्र में प्रधानमंत्री मोदी और बुलडोजर बाबा ने खूब हिंदू-मुसलमान किया। नफरत फैलाने में खुद प्रधानमंत्री मोदी ने कोई कसर नहीं छोड़ी। वे देश के पहले प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने अपने ही देश के नागरिकों में नफरत का जहर घोला। कहते रहे कि इंडिया गठबंधन वाले जीत गए, तो राम मंदिर पर बाबरी ताला लगा देंगे। क्या नहीं कहा, लेकिन अखिलेश ने सबका मुकाबला करते हुए मोदी और योगी के होश उड़ा दिए।
आखिर अखिलेश ने राममंदिर के उद्घाटन, नफरत की राजनीति, जयंत चौधरी का पाला बदल लेना तथा मायावती का भाजपा के लिए खुल कर काम करने का किस प्रकार मुकाबला किया।
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मोदी से मिले नीतीश, भाजपा को दिया गच्चा
अखिलेश जनता के मुद्दे पर टिके रहे।
- परीक्षाओं के पेपर लीक, अग्निवीर पर जोर दिया, इससे युवा वर्ग का साथ मिला। मोदी और योगी दोनों की नौकरी देने में पूरी तरह विफलता को मुद्दा बनाया।
- किसानों का मुद्दा उठाया। फसलों की कीमत और छुट्टा जानवरों से तबाह किसानों की बात की। दो साल पहले प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि छह महीने में छुट्टा जानवरों की समस्या दूर कर देंगे। लेकिन यह वादा झूठा निकला।
- इंडिया गठबंधन में सीटों के बंटवारे में उदारता तथा कांग्रेस के साथ बेहतर तालमेल। राहुल गांधी के साथ उनकी सभाओं ने लहर को आंधी में बदल दिया।
- पीडीए अर्थात पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक पर जोर दिया। गैर यादव पिछड़ों को ज्यादा टिकट दिए। सिर्फ पांच यादव प्रत्याशी दिए, जबकि 13 कुर्मी, छह कुशवाहा और यहां तक कि सामान्य सीटों से भी दलित प्रत्याशी को उतार देना साहस का काम है। अयोध्या में उन्होंने दलित प्रत्याशी दिया और खबर लिखे जाते समय वे आगे चल रहे हैं।
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