अखिलेश ने इस एक नारे से पूरे चुनाव की तय कर दी दिशा
चुनाव में नैरेटिव बहुत मायने रखता है। भाजपा अब तक कोई नैरेटिव सेट नहीं कर पाई है। अब सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने पूरे चुनाव को प्रभावित करनेवाला दिया नारा।
कुमार अनिल
यूपी चुनाव में बार-बार धार्मिक स्तर पर ध्रुवीकरण की कोशिश की जा रही है। कभी मुख्यमंत्री योगी कहते हैं कि यह चुनाव 80 और 20 के बीच है, तो कभी कहा जाता है कि सपा जीती, तो फिर से पलायन होगा। कभी अयोध्या में मंदिर, काशी कॉरिडोर और मथुरा की चर्चा की जा रही है, कभी मुगल तो कभी कुछ और। इस बीच आज सपा प्रमुख अकिलेश यादव ने एक नया नारा दे दिया।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने आज नया नारा दिया-यूपी का चुनाव भाईचारा और भाजपा के बीच है। इस एक नारे से उन्होंने भाजपा के दिग्गजों के पूरे प्रचार को घेर दिया। यह नारा दूर तक असर करनेवाला है। इस नारे से अखिलेश यह बताना चाहते हैं कि एक तरफ भाईचारा है और दसरी तरफ भाजपा है। आप दोनों में से एक चुन लीजिए। स्वाभाविक है, कोई भी व्यक्ति भाईचारा चाहेगा।
अखिलेश यादव ने इस एक नारे से भाजपा की लगातार 80-20 वाली राजनीति को घेर दिया है। अब भाजपा जितना ज्यादा औरंगजेब, मुगल, जिन्ना और अयोध्या में मंदिर-मंदिर की बात केरगी, उतना ज्यादा सपा यह साबित करेगी कि भाजपा भाईचारा नहीं चाहती।
चुनाव में नारे का, नैरेटिव का बड़ा महत्व होता है। अमित शाह ने यहां तक कहा कि जाट और भाजपा का संबंध 650 साल पुराना है। दोनों की मुगलों से लड़ते रहे। यह नैरेटिव नहीं चल पाया। सवाल उठा कि 650 साल पहले भाजपा का जन्म भी नहीं गुआ था। किसान आंदोलन की मांगें आज तक पूरी नहीं हुईं। भाजपा बार-हार नैरेटिव सेट करने की कोशिश कर रही है, पर इस बार नैरेटिव सपा तय कर रही है। सपा को पूरा जोर जनता के बुनियादी सवालों पर है। अब उन्हों पहली बार आर्थिक सवालों से आगे जाकर भाईचारे का सवाल उठाया है। भला कौन नहीं चाहेगा भाईचारा? इस नए नारे से अखिलेश यादव ने भाजपा को झगड़ालू साबित कर दिया। देखना है, इस नारे का भाजपा कैसे जवाब देती है।
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