केंद्र की मोदी सरकार ने गृहमंत्री अमित शाह के करीबी ज्ञानेश कुमार को पिछली रात आनन-फानन में मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त कर दिया। वे अमित शाह के रीबी रहे हैं। विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने लिखित विरोध जताया, पर उनके विरोध को खारिज कर दिया गया। मालूम हो कि पहले चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता तथा सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश तीन लोगों की कमेटी करती थी। मोदी सरकार ने कानून बदल कर कमेटी से चीफ जस्टिस को बाहर कर दिया। अब प्रधानमंत्री, प्रधानमंत्री ज्वारा नियुक्त उनके ही मंत्रिमंडल का एक सहयोगी तथा विपक्ष के नेता की कमेटी चुनाव आयुक्त का नाम तय करेगी। जाहिर है, सरकार जो चाहेगी, वही होगा।
याद रहे सरकार के इस नए कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, जिस पर 19 फरवरी को सुनवाई होनी है। यानी कोर्ट में सुनवाई से ठीक पहले सरकार ने नियुक्ति कर दी। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी में प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता तथा चीफ जस्टिस को रखना अनिवार्य किया था, जिसके बाद सरकार ने कानून ही बदल दिया। उसी कानून की वैधता को चुनौती दी गई थी।
कांग्रेस ने केंद्र सरकार के इस फैसले को मिड नाइट कू की संज्ञा दी है यानी आधी रात को तख्ता पलट कहा है। इसे लोकतंत्र पर हमला करार दिया है। अन्य विपक्षी दलों ने भी विरोध जताया है। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी सवाल उठाया है।
विपक्षी दलों ने कहा कि अब चुनाव आयोग का कोई मतलब नहीं रह गया। सरकार जिसे चाहेगी, उसे मुख्यमं चुनाव आयुक्त बनाएगी। राहुल गांधी ने लोकसभा में अपने भाषण में भी इस कमेटी का विरोध किया था, कहा था कि अब उनके कमेटी में रहने का कोई औचित्य नहीं रह गया है।