बिहार कांग्रेस के आयातित अध्यक्ष Akhilesh SIngh की चुनौतियां
कांग्रेस के 137 साल के इतिहास में यह तीसरा मौका है जब बिहार अध्यक्ष की कमान ऐसे व्यक्ति को मिली है जो बाहर से आये और पार्टी में छा गये.
इससे पहले अनिल शर्मा, व रामजतन सिन्हा भी अन्य दलों से आ कर अध्यक्ष पद संभाला.
हक की बात इर्शादुल हक के साथ में आइए जानते हैं अखिलेश सिंह (Akhilesh SIngh) में क्या खास है जो कभी लालू प्रसाद के चहते रहे. लालू की मेहरबानी से केंद्र और राज्य में मंत्री रहे.और आज बिहार कांग्रेस की कमान उनके हाथों में सौंप दी गयी. जबकि अखिलेश जब से कांग्रेस में हैं, एक या दो नहीं बल्कि तीन चुनाव लड़े और सब हार गये. अखिलेश कांग्रेस का दामन थामते ही 2009 में पूर्वी चम्पारण लोकसभा सीट से चुनाव लड़े, हार गये. उसके बाद 2014 में मुजफ्फरपुर से कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में उन पर दाव लगाया और वह दोबारा जीत नहीं सके. इतना ही नहीं जब 2015 में विधान सभा का चुनाव हुआ तो उन्होंने तरारी विधान सभा सीट से चुनाव लड़ा और उन्होंने हार की हैट्रिक बना ली.
यह भी पढ़ें Akhilesh ने कर दिया Nitish के साथ आने का एलान
लेकिन जरा टहरिये. यह वही कांग्रेस है जो अपने प्रत्याशियों के बैकग्राउंड और उसकी विनबिलिटी क्षमता पर कभी काफी जोर देने के लिए जानी जाती रही है. उसने हार की हैट्रिक लगाने वाले अखिलेश सिंह ( Dr Akhilesh Prasad Singh) को 2018 में राज्यसभा में पहुंचा दिया. और उन्हीं अखिलेश सिंह को 2022 आते-आते बिहार कांग्रेस की कमान ही सौंप दी.
अखिलेश कांग्रेस के लिए कितने महत्वपूर्ण हो चुके हैं, या यूं कहें कि राहुल गांघी से उनकी कितनी कुर्बत है,इस पर चर्चा से पहले आइए जानते हैं अखिलेश प्रसाद सिंह के सियासी सफर की संक्षिप्त कहानी.
सियासी सफर, राजद से मिली पहचान
सन 2000 में जब अखिलेश सिंह विधायक बने तो उन्हें राबड़ी देवी सरकार में स्वास्थ्य विभाग का मंत्री बनाया गया. वह इस पद पर 2004 तक रहे. 2004 के लोकसभा चुनाव में लालू यादव ने उन्हें मोतिहारी लोकसभा सीट से चुनाव लड़वाया और जीतने के बाद वह राजद कोटे से कांग्रेस की मनमोहन सिंह की सरकार में केंद्र में कृषि मंत्री बनाये गये. आगे चल कर जब दोबारा कांग्रेस से गठबंधन हुआ और पूर्वी चम्पारण की सीट कांग्रेस के खाते में गयी तो राजद ने उन्हें कांग्रेस को एक्सपोर्ट कर दिया लेकिन वह चुनाव हार गये.
चंद वाक्यों में अखिलेश प्रसाद सिंह का सियासी सफर बस इतना ही है. गोया जबसे वह कांग्रेस में गये एक भी चुनाव नहीं जीते. लेकिन अखिलेश प्रसाद सिंह की सबसे बड़ी काबलियत यह रही कि उन्होंने इन दिनों में राहुल के करीब होने में सफल रहे. राहुल को बिहार में नये लीडरों की तलाश रही है. और यही वजह थी कि 20 19 के चुनाव के दौरा जब राहुल गांधी पटना के गांधी मैदान में चुनावी सभी किया तो अपने कार्यक्रम की पूरी जिम्मेदारी अखिलेश के कंधों पर सौंप दी. उस समय कांग्रेस ने काफी बुरा प्रदर्शन किया और राज्य में सिर्फ एक लोकसभा सीट कांग्रेस को मिल सकी.
इसे पहले अखिलेश सिंह 2018 में राज्यसभा के सदस्य बना दिये गये थे. इतना ही नहीं उन्हें तब चुनाव कम्पेन समिति का अध्यक्ष भी बनाया जा चुका था.
गुटबाजी से कांग्रेस का चोली-दामन का रिश्ता
अखिलेश प्रसाद सिंह भूमिहार जाति से हैं. मदनमोहन झा (ब्रह्मण) से उन्होंने अध्यक्ष का पद हासिल किया. बिहार में कांग्रेस, अपने गठबंधन सहयोगी राजद के बरक्स, फॉर्वड कास्ट पर ज्यादा दाव लगाती है. ताकि भाजपा के अगड़ा कार्ड का विकल्प कांग्रेस बन सके. चूंकि 1990 के बाद से बिहार में कांग्रेस हाशिये की पार्टी के रूप में सिमट सी गयी है. ऐसे में कोई आधा दर्जन अध्यक्ष आये ( जिनमें लगभग सभी अगड़ी जाति से ही रहे) चले गये. लेकिन कांग्रेस बिहार में कभी प्रभावशाली नहीं बन सकी.
सभागार में इंतजार करते रहे और वह तीन घंटे के लंबे इंतजार के बाद पहुंचे.
दूसरी तरफ कई नेता अखिलेश सिंह को तुनुक मिजाज और अहंकारी तक बताते हैं. उनके अध्यक्ष बनने की घोषणा के बाद जब कांग्रेस की 9 वर्षों से महिला अध्यक्ष अमिता भूषण ने इस्तीफा दे दिया तो उसके दो दिन बाद उनका कमरा खाली करा लिया गया उनके साज-सामान कूड़ेदान में फेक दिये गये. इस संबध में जब नौकरशाही डॉट कॉम ने उनसे पूछा कि आप अखिलेश के अभिनंदन समारोह में नहीं गयीं. क्या आप उनके साथ हैं. इसके जवाब में अमिता ने कहा वह कांग्रेस के साथ हैं.
दूसरी तरफ कांग्रेस में ऐसे नेताओं की भी कमी नहीं जो अखिलेश सिंह को जुझारू नेता मानेत हैं. वरिष्ठ कांग्रेसी नेता आजमी बारी कहते हैं कि अखिलेश जी संघर्षों से आयें हैं और उनसे काफी उम्मीदें हैं. कांग्रेस काफी मजबूत होगी.
अखिलेश सिंह की चुनौतियां
पटना में अपने लिए आयोजित अभिनंदन समारोह में यह मैसेज देने की कोशिश की कि वह लालू यादव के करीब तो रहे हैं लेकिन जहां तक कांग्रेस के हक की बात है वह किसी भी हाल में दबेंगे नहीं. उन्होंने कहा कि राजद जदयू बड़ी पार्टियां हैं तो उन्हें अपने सहयोगी दलों का भी सम्मान करना पड़ेगा.
दर असल कुछ लोगों का मानना है कि अखिलेश सिंह सीट बंटवारे पर राजद से बारगेन करने की स्थिति में नहीं होंगे. और जब तक ज्यादा सीट नहीं मिलेगी तब तक कांग्रेस बिहार में कमजोर ही रहेगी. ऐसे में देखना होगा कि अखिलेश सिंह कांग्रेस को किस ऊचाई तक ले जा पाते हैं.