इर्शादुल हक, संपादक, नौकरशाही डॉट कॉम
बिहार के चुनावी माहौल पर तीसरा सर्वे आ गया है. सर्वे के नतीजों पर बात करने से पहले हमारी दिलचस्पी इसके मैथेडोलॉजी पर है. आईओएन भारत के इस सर्वे ने एक अद्भवत और नया प्रोयग किया है.
अन्य सर्वे की तरह इसमें भी करीब 5 हजार लोगों को सर्वे का आधार तो बनाया गया है पर इसके लिए आम लोगों के चयन के बजाये जमीन से जुडे प्रतिनिधियों को आधार बनाया गया है- यानी वार्ड पार्षदों को. सर्वे की दूसरी खासियत यह है कि इसके लिए केवल अत्यतंत पिछड़ी जातियों के वार्ड पार्षद ही को शामिल किया गया है.
दर असल इस चुनाव में यही जातियां चुनाव नतीजों का फैसला करने वाली है. क्योंकि दीगर जातियां ( मुस्लिम, यादव, कुर्मी, कोयरी, और एक हद तक अनुसूचित जाति) किधर वोट करती हैं यह लगभग कमोबेश फिक्स है. ईबीबीस वर्ग जिधर गया उसकी जीत पक्की.
तीसरा पहलू
इस सर्वे में विपक्ष पर एक भी सवाल नहीं पूछा गया. तमाम सवाल सत्ताधारी गठबंधन और उसके नेता नीतीश के बारे में ही पूछा गया
सर्वे के नतीजे
इस सर्वे ने साफ संकेत दिया है कि 63 प्रतिशत लोग नीतीश सरकार से नाराज हैं. मात्र 16 प्रतिशत लोग एनडीए के पक्ष में वोट करना चाहते हैं. जबकि 21 प्रतिशत लोग दुविधा में हैं कि वे किधर जायेंगे.
इस प्रकार इस सर्वे के सेफालोजिस्ट रामबंधु वत्स का कहना है कि इस चुनाव में नीतीश सरकार के खिलाफ भयंकर रूप से एंटिइंकम्बेंसी है. जबकि दूसरा पहलू वोटरों के लिए सामाजिक न्याय के प्रति दलों का समर्पण है. इन दोनों मोर्चों पर लोग नीतीश-भाजपा से नाराज हैं.
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