गठबंधन और सीट बंटवारे पर तुक्केबाजी को कौन देता है हवा

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Irshadul Haque, Editor naukarshahi.com

बिहार चुनाव की घोषणा के साथ ही विभिन्न गठबंधनों में सीट बंटवारे पर कंफ्यूजन की स्थिति है. कभी एक गठबंधन टूटने की खबर आती है तो कभी दूसरे अलायंस से किसी दल के हटने की खबरों को हवा मिलती है. इसी तरह कभी इस गठबंधन में सीट शेयरिंग में अमुक दल को कितनी सीट मिलेंगी इस पर चर्चा गर्म होती है. दूसरे ही पल फिर सीट बंटवारे और गठबंधन के भविष्य पर कोई दूसरी कहानी गश्त करने लगती है.

आखिर गठबंधनों के भविष्य और सीट बंटवारे पर हकीकत कम और फसाने ज्यादा सुनने को क्यों मिलते हैं.

दर असल दोनों बड़े गठबंधनों में शह-मात का खेल चल रहा है. उदाहरण के लिए एनडीए में एलजेपी को लें. एलजेपी पिछले दो महीने से कह रही है कि अगर उसकी उम्मीदों के अनुकूल सीटें नहीं मिलीं तो वह 143 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करेगा. यह ‘143’ का गणित क्या है. साथ ही वह यह क्यों कह रही है कि वह भाजपा के खिलाफ अपने उम्मीदवार नहीं उतारेगी? इस गणित को समझने की जरूरत है. दर असल भाजपा के शह पर एलजेपी जदयू पर दबाव बनाने की रणनीति पर काम कर रही है. वह 143 कह रही है तो इसका मतलब यह है कि जदयू ए143 सीटों पर लड़ना चाहता है. जबकि वह भाजपा के खिलाफ उम्मीदवार खड़े नहीं करने की बात कह रही है. इसका मतलब है कि कुल 243 सीटों में से बाकी बचे 100 सीटों पर भाजपा दवा ठोक रही है. लिहाजा वह भाजपा के लिए 100 सीटें मांगने के अभियान का हिस्सा है. ऐसे में समझौता होने की स्थिति में एलजेपी 43 सीटें मांग रही है. इसका मतलब यह हुआ कि भाजपा 100 पर लड़े और जदयू भी 100 पर ही लड़े. यानी भाजपा व जदयू के बीच बराबर की साझेदारी हो, इसके लिए एलजेपी बैटिंग कर रही है.

इसी तरह राजद गठबंधन से अलग हो कर एनडीए में, जदयू की सहयोगी के रूप में शामिल हुई मांझी की पार्टी हम, आठ सीटों पर लड़ने का मन बना रही है. वह राजद से 20 की मांग कर रही थी. और इधर जदयू के करीब आने के बाद वह 12 सीटों का नुकसान उठाने को तैयार है. मलत साफ है कि अगर एलजेपी, भाजपा के लिए बैटिंग कर रही है तो नीतीश ने मांझी को बुला कर अपने लिए बैटिंग करवा रहे हैं.

उधर उपेंद्र कुशवाहा, राजद से अलग होने के बावजूद, एनडीए में ज्वाइन ना करने की बात कह रहे हैं जबकि वह अपने प्रवक्ता माधव आनंद से कुछ और बुलवा रहे हैं. वह कह रहे हैं कि एनडीए में हम पहले भी रह चुके हैं. लिहाजा हम एनडीए के स्वाभाविक सहयोगी हैं. इसका मतलब साफ हुआ कि अभी कुशवाहा न तो राजद के साथ अपने रिश्ते तोड़ना चाहते हैं और साथ ही एनडीए के समर्थन में बयान दिलवा कर राजद पर दबाव की भी राजनीति कर रहे हैं.

ये तमाम बातें सूत्रों के हवाले से और तुक्केबाजी के आधार पर खबरों का रूप ले कर मीडिया में सामने आ रही है. यह सिलसिला दो एक दिन और चलेगा. तब जा कर चीजें सामन्य होंगी और फिर विभिन्न गठबंधनों का स्वरूप क्लियर होगा.

By Editor


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