चुनाव दूसरा चरण: क्या अपने ही कोर वोटर्स ने किया भाजपा का सूपड़ा साफ़ ?
बिहार चुनाव के दुसरे चरण में 52.44% वोटिंग हुई. शहरी क्षेत्रों के वोटरों में उत्साह नहीं दिखा लेकिन ग्रामीण इलाकों में ज्यादा मतदान हुआ. आंकलन बताता है कि भाजपा के वोटर्स ने चुनाव से दूरी बना ली है जिससे दुसरे चरण में भी एनडीए पिछड़ती दिख रही है.
आंकलन के मुताबिक कहा जा सकता है कि भाजपा और जदयू के कब्ज़े वाली सीटों पर एनडीए हार सकती है क्यूंकि पार्टी के समर्थन करने वालों ने वोट नहीं किया. अब ज़ाहिर है इसका फायदा महागठबंधन को मिल सकता है.
दुसरे चरण के वोटिंग पैटर्न के मुताबिक महागठबंधन को पहला फायदा यह हो सकता है कि वह अपने कब्ज़े वाली सीटें जीत सकती है वहीँ अब भाजपा के कब्ज़े वाली सीटें भी महागठबंधन के खाते में जाती हुई दिख रही है. क्यूंकि शहरी क्षेत्रों में बहुत ही कम मतदान हुआ और भाजपा के ज़्यादातर वोटर्स शहरी क्षेत्रों से ही आते हैं.
शहरी क्षेत्रों के विपरीत ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा वोटिंग का एक मतलब यह हो सकता है कि महागठबंधन के पक्ष में अधिक मतदान हुआ हो. दुसरे चरण के मतदान में जनता की राय से एक शुरूआती इम्प्रैशन बनता है कि राज्य में मुद्दों पर आधारित वोटिंग हो रही है और जाति फैक्टर का असर बहुत कम हो गया है.
महागठबंधन के नेताओं का कहना है कि कम से कम 65 सीटों पर उनकी जीत होगी. बिहार चुनाव के दुसरे चरण में कुल 94 सीटों पर मतदान हुआ था. इस समय इन 94 सीटों में से 50 पर एनडीए का और 41 पर ‘महागठबंधन’ का क़ब्ज़ा है. अगर ऐसा ही होता है तब भाजपा या जदयू के खाते वाली सीटें महागठबंधन के दलों का कब्ज़ा हो सकता है.
वरिष्ठ पत्रकारों का कहना है कि ग्रामीण इलाकों में अप्रत्याशित रूप से ज्यादा मतदान हुआ जिससे जनता का मूड पता चलता है. बिहार में बदलाव की लहर है इसलिए वोटर्स ने मुद्दों पर आधारित मतदान किया है. भाजपा के समर्थकों में मतदान को लेकर ज्यादा जोश नहीं दिखा. इसलिए महागठबंधन की जीत पक्की है.
अगर दुसरे चरण के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के वोट प्रतिशत पर नज़र डालें तो ऐसा लगता है कि एनडीए एवं भाजपा का समर्थन करने वाले वोटर्स ने वोट ही नहीं किया जिससे शहरी क्षेत्रों में कम मतदान हुआ. उदाहरण के लिए हर विधान सभा सीट में करीब तीन लाख मतदाता होते हैं जबकि इसके आधे एक लाख या डेढ़ लाख के के करीब मतदाता वोट करते हैं.
अगर पटना के शहरी क्षेत्रों की बात करें जैसे पटना शहर और कुम्हरार में ग्रामीण इलाकों में की तुलना में 30-40 हज़ार वोटों का फासला रहता है. ऐसे शहरी क्षेत्र में व्यवसायी वर्ग की अच्छी संख्या होती है लगभग 25-30% जो सामान्यतः भाजपा को समर्थन देते हैं उन्होंने पहले की अपेक्षा कम वोटिंग की.
बिहार की ज़्यादातर सीटों पर हार/जीत का अंतर अधिकतम 7000-8000 वोटों का होता है. अब इसका एक परिणाम यह हो सकता है कि भाजपा कई शहरी क्षेत्रो की सीटों पर हार सकती है जिसपर पहले से पार्टी का कब्ज़ा रहा है.
बिहार चुनाव के दुसरे चरण के तहत कुल 17 जिलों के 94 विधानसभा क्षेत्रों के लिए मतदान हुआ. सबसे ज्यादा मतदान पश्चिम चंपारण जिले में हुए 59.76% जबकि सबसे कम मतदान पटना जिले में हुआ, 48%. अगर विधान सभा सीटों की बात करें तो सबसे ज्यादा मतदान मनेर में 61. 80% जबकि पटना के कुम्हरार विधानसभा क्षेत्र में 36.40 % मतदान हुआ.
बिहार चुनाव के तीसरे चरण का मतदान 7 नवम्बर को होंगे. इसमें राज्य के 15 जिलों के 78 विधानसभा सीटों पर मतदान होगा. निर्वाचन आयोग द्वारा बिहार चुनाव के नतीजे 10 नवम्बर को जारी किये जायेंगे.