सुप्रीम कोर्ट में फिर आज बिहार सरकार गिड़गिड़ाती नजर आयी. कहा हुजूर 3 लाख 70 हजार नियोजित शिक्षकों को समान काम के लिए समान वेतन देने के लिए वह आर्थिक रूप से सक्षम नहीं है.
इस मामले की सुनवाई फिर कल यानी बुधवार को होगी. अब बिहार के पौने चार लाख नियोजित शिक्षक सुप्रीम कोर्ट की तरफ टकटकी लगा के देख रहे हैं. शिक्षकों ने सुप्रीम कोर्ट में समान काम के लिए समान वेतन के लिए गुहार लगाई थी.
गौरतलब है कि बिहार में नियोजित शिक्षकों के लिए सामान्य शिक्षकों के बराबर वेतन नहीं मिलता. दर असल उन्हें चतुर्थ वर्गीय कर्मी यानी चपरासी के बराबर भी वेतन नहीं मिलता.
इस मामले में पटना हाईकोर्ट ने 31 अक्टूबर 2017 को नियोजित शिक्षकों के पक्ष में फैसला सुनाया था. हालांकि, बाद में राज्य सरकार ने 15 दिसंबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी.
पूर्व में 29 जनवरी 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की पहली सुनवाई के दौरान राज्य सरकार से पूछा था कि शिक्षकों का वेतन चपरासी से भी कम क्यों है. राज्य सरकार का कहना है कि नियोजित शिक्षक नियमत: शिक्षकों की श्रेणी में नहीं आते. इसके बाद भी अगर नियोजित शिक्षकों को समान काम, समान वेतन के आधार पर वेतन दी जाती है तो राज्य के खजाने पर 36 हजार 998 करोड़ रुपये का बोझ बढ़ेगा.
इस मामले में केंद्र सरकार ने भी बिहार सरकार के स्टैंड का समर्थन किया है.