कविता हृदय के घावों को हीं नहीं भरती, मन प्राण को नवीन ऊर्जा भी प्रदान करती है। इसमें प्राण–दायी शक्ति है। गीत और संगीत हीं मन की मलीनता को दूर कर मनुष्य को ‘मनुष्य‘ बनाता है। मानव–जीवन इसके अभाव में चल नहीं सकता। इसलिए हर एक व्यक्ति को, किसी न किसी रूप में, कविता से अर्थात साहित्य से जुड़ना चाहिए। यह जुड़ाव श्रोता और पाठक के रूप में भी हो सकता है।
यह बातें शनिवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, वरिष्ठ कवि प्रणय कुमार सिन्हा के नवीन काव्य–संग्रह ‘छूना है आकाश‘ के लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, कवि प्रणय की रचनाओं में शाश्वत–प्रेम और छंद के प्रति गहरा आग्रह दिखाई देता है। इस आग्रह को और दृढ़ तथा परिष्कृत किया गया तो, भविष्य में और भी मूल्यवान और बड़ी कविता के सृजन की संभावना बढ़ेगी।
पुस्तक का लोकार्पण करते हुए, बिहार राज्य हिन्दी प्रगति समिति के अध्यक्ष और ‘बिहार–गीत‘ के रचनाकार श्री सत्यनारायण ने कहा कि, कविता मनुष्यता की मातृ–भाषा होती है। साहित्य के अभाव में संसार से मनुष्यता समाप्त हो जाएगी। लोकार्पित पुस्तक के कवि बहुमुखी प्रतिभा के रचनाकार हैं। इनकी रचनाओं में जीवन के सभी रंग और रूप दिखाई देते हैं। किंतु इनकी रचनाओं के मूल में प्रेम है।
वरिष्ठ कवि और मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग में विशेष सचिव डा उपेन्द्र नाथ पाण्डेय ने कहा कि, प्रणय जी की लोकार्पित पुस्तक की कविताओं को पढ़ते हुए, ऐसा लगता है कि कवि ने आज के समय को बहुत हीं सरल और सहज शब्दों में पाठकों के बीच में रखा है। इनकी कविताओं में समाज की विभिन्न पीड़ाओं की भी अभिव्यक्ति हुई है। उन्होंने कहा कि कवि लोक–धर्मी होता है। उसकी रचनाओं में लोक–वेदना प्रकट होनी चाहिए।
वरिष्ठ साहित्यकार जियालाल आर्य, डा अशोक प्रियदर्शी, प्रो वासुकीनाथ झा, श्यामजी सहाय, रमेश कँवल ने भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए और कवि को अपनी शुभकामनाएँ दी।
पुस्तक के कवि प्रणय कुमार सिन्हा ने कृतज्ञता–ज्ञापन के क्रम में लोकार्पित पुस्तक से अपनी प्रतिनिधि रचनाओं का पाठ करते हुए कहा कि “चलो उम्र को हराते हैं/ कोई प्रेम का गीत गाते हैं/ — ख़ूब सूरत है जब रास्ता इतना, मंज़िल की तमन्ना कौन करे/ दिन रात चले, निर्बाध चले, महफ़िल की तमन्ना कौन करे!”
इस अवसर पर आयोजित कवि–सम्मेलन का आरंभ राज कुमार प्रेमी की वाणी–वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि रमेश कँवल, बच्चा ठाकुर, डा मेहता नगेंद्र सिंह, सुनील कुमार दूबे, मधुरानी लाल, ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश‘, नीलू अग्रवाल, डा मीना कुमारी परिहार, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, कुमारी स्मृति, शुभचंद्र सिन्हा, प्रियंका प्रिया, जय प्रकाश पुजारी, पूजा ऋतुराज, श्रीकांत सत्यदर्शी, प्रभात कुमार धवन, डा अर्चना त्रिपाठी, कृष्णा सिंह, सिद्धेश्वर, संजू शरण, सच्चिदानंद सिन्हा, मनोरमा तिवारी, छट्ठू ठाकुर, श्रीकांत व्यास, डा मौसमी सिन्हा, राज प्रिया रानी, अर्जुन प्रसाद सिंह, बाँके बिहारी साव, सिंधु कुमारी ने भी अपनी रचनाओं से श्रोताओं को प्रभावित किया।
इस अवसर पर, अम्बरीष कांत, प्रो माया सिन्हा, शिवनाथ प्रसाद, प्रेम सिन्हा, अजय सिन्हा तथा विजय कुमार समेत सैकड़ों की संख्या में कवि एवं काव्य–रसिक उपस्थित थे। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।