बिहार में शिक्षक बहाली : ‘झोलानोमिक्स’ सबसे बड़ी बाधा
राजद प्रवक्ता चितरंजन गगन ने शिक्षक बहाली को लेकर शिक्षा मंत्री को आज आईना दिखा दिया। आखिर बहाली को लेकर सरकार क्यों इच्छुक नहीं है?
कुमार अनिल
बिहार के शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी ने शिक्षक बहाली को लेकर पहले कहा था कि पंचायत चुनाव से बहाली प्रक्रिया में कोई बाधा नहीं है और अक्टूबर तक प्रारंभिक स्कूलों के चयनित अभ्यर्थियों को नियुक्तिपत्र मिल जाएगा। तब अखबारों ने इसे मोटे अक्षरों में छापा था। अब अक्टूबर में मंत्री कह रहे हैं कि राज्य चुनाव आयोग से अनुमति मिलने पर बहाली होगी।
राजद प्रवक्ता चितरंजन गगन ने मंत्री के लगातार बयान बदलने पर इसे दोमुंहापन कहा। उन्होंने ट्वीट किया- श्रीमान जी यह भी आपहीं का बयान है ” शिक्षक बहाली : पंचायत चुनाव का इस प्रक्रिया पर कोई असर नहीं होगा।” अब आप ही बताइए आपके किस बयान को सही माना जाये और भ्रमित कौन कर रहा है? पहले आपने कहा था, लखनऊ उच्च न्यायालय के एक आदेश के अनुसार शिक्षक बहाली आचार संहिता के दायरे में नहीं आयेगा। अब कह रहे हैं अनुमति का इंतजार है।
सवाल यह है कि शिक्षक अभ्यर्थी वर्षों से आंदोलन कर रहे हैं। विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी का साथ भी मिला, लेकिन सरकार बहाली को लेकर कभी इच्छुक नहीं रही।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बाढ़ पीड़ितों के नुकसान के एक अंश की भरपाई करने में प्रो-एक्टिव दिखते हैं। दौरा कर रहे हैं। अधिकारियों को निर्देश दे रहे हैं। अब तो वे हेलिकाप्टर छोड़कर नीचे जमीन पर भी मुआयना करते दिखते हैं। वही मुख्यमंत्री शिक्षक बहाली के मामले में प्रो-एक्टिव के विपरीत रिएक्टिव क्यों नजर आते हैं।
इस सवाल का जवाब कोई रॉकेट साइंस नहीं है। सीधी सी बात है, प्रधानमंत्री मोदी 80 करोड़ गरीबों को अपने फोटो वाला झोला क्यों बांट रहे हैं। सत्ता को मालूम है कि पांच किलो अनाज में ही लोग अपने धंधे-रोजगार-नौकरी को भूलकर वोट देंगे। जो नहीं देंगे, उनके लिए हिंदू-मुस्लिम, पाकिस्तान, 25 बच्चे रोज वाट्सएप में ठेले जा रहे हैं। अब तो लोगों के लिए सावरकर जरूरी हैं। इसके साथ तीसरा महत्वपूर्ण पक्ष है देश में तेजी से निजीकरण।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बाढ़ से नुकसान के एक अंश की भरपाई झोलानोमिक्स ही है। बिहार भी निजीकरण को लेकर प्रो-एक्टिव हैं।
दिल्ली विवि के शिक्षक राजन झा कहते हैं कि बिहार में ठेके पर शिक्षक की नियुक्ति नीतीश कुमार की देन है। उनसे पहले की सरकारों में स्थायी नियुक्ति होती थी।
सरकारी स्कूलों का निर्माण, उन पर जोर यह नेहरू के वेलफेयर इकोनोमिक्स का हिस्सा था। अब तो बेचो-बेचो कैंपेन चल कहा है।
अगर शिक्षक अभ्यर्थियों को नेहरू और मोदी में चुनने कहा जाए, तो बड़ी संख्या नेहरू के खिलाफ होगी। नेहरू को आज की सत्ता देखना नहीं चाहती, तो एक वजह उनकी मिश्रित अर्थव्यवस्था भी है, जो बेचो-बेचो अभियान के खिलाफ है। आप नेहरू का विरोध करेंगे और सरकारी स्कूल भी चाहेंगे, तो आप विरोधाभास में जी रहे हैं।
याद रखिए यही सत्ता कल कहेगी कि बिहार के स्कूलों के पास जमीन बहुत है, बिल्डिंग भी है, लेकिन आउटपुट नहीं है। इसलिए सरकारी स्कूलों को निजी हाथों में दे देना चाहिए। वाट्सएप यूनिवर्सिटी तैयार है। संभव है, आपमें कई लोग होंगे, जो जेेएनयू में सस्ती शिक्षा के खिलाफ हवा बनाने में साथ दिए हों।
शिक्षक बहाली दरअसल स्कूल बचाने से जुड़ी है। निजीकरण के विरोध से जुड़ी है। किसान समझ गए हैं, देखते हैं, शिक्षक अभ्यर्थी कब समझते हैं।
‘Hunger Index : नवरात्र उपवास के कारण भारत पिछड़ा’