बिहार चुनाव बहिष्कार की तैयारीबिहार चुनाव बहिष्कार की तैयारी
भयंकर चुनाव चोरी के महाषड्यंत्र की आहट से बिहार के अवाम में भारी आक्रोश है. जनता का यह आक्रोश किस रूप में और कहां तक जायेगा यह कहना फिलवक्त कबल अज वक्त होगा.
इर्शादुल हक
बिहार चुनाव बहिष्कार की तैयारी
बिहार चुनाव बहिष्कार की तैयारी
लेकिन जिस तरह से विपक्षी दल नाराज हैं और जिस तरह के संकेत तेजस्वी यादव ने दिया है, उससे लगता है कि पूरा विपक्ष चुनाव बहिष्कार के विक्लप को भी चुन सकता है.
तो आइये जानते हैं कि अगर सभी विपक्षी दल चुनाव बहिष्कार करें तो क्या होगा? – एक वैधानिक और राजनीतिक विश्लेषण
भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है जहाँ चुनाव प्रणाली लोकतंत्र की रीढ़ मानी जाती है। लेकिन कल्पना कीजिए कि यदि बिहार के सभी मान्यता प्राप्त विपक्षी राजनीतिक दल अगला विधान सभा चुनाव का बहिष्कार कर दें — यानी चुनाव में भाग ही न लें — तो इसका वैधानिक, संवैधानिक और राजनीतिक असर क्या होगा
कानूनी स्थिति
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भारत में चुनाव कराना संविधान की जिम्मेदारी है, जिसे चुनाव आयोग (ECI) के माध्यम से संपन्न किया जाता है।
Representation of the People Act, 1951 के तहत चुनाव प्रक्रिया चलती है।इसमें कहीं यह अनिवार्य नहीं है कि सभी राजनीतिक दल चुनाव में भाग लें।
❝इसलिए यदि विपक्षी दल चुनाव से हट जाएं, तब भी चुनाव वैध रूप से होंगे और संसद/विधानसभा का गठन हो जाएगा।❞
️ . क्या चुनाव रुक सकते हैं?
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नहीं। चुनाव का बहिष्कार राजनीतिक कदम है, कानूनी नहीं। यदि किसी सीट पर केवल एक उम्मीदवार बचता है, तो वह निर्विरोध निर्वाचित हो सकता है। यदि बहुत कम मतदान होता है, तब भी चुनाव परिणाम मान्य होगा।
️ राजनीतिक और लोकतांत्रिक प्रभाव
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हालांकि चुनाव कानूनी रूप से मान्य होंगे, लेकिन इसके गंभीर राजनीतिक असर होंगे: लोकतंत्र की साख पर सवाल खडे होंगे. दुनिया भर में भारत की आलोचना होगी. क्योंकि एकपक्षीय चुनाव लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करते हैं। और दूसरी तरफ इससे नयी सरकार पर जनता का विश्वास कम हो सकता है। इससे भारत की अंतरराष्ट्रीय साख पर असर पड़ेगा. पर इससे मोदी-शाह पर कोई असर नहीं पड़ेगा. उनके लिए सत्ता महत्वपूर्ण है, साख नहीं.
हालांकि ऐसे चुनाव के बाद राज्य में राजनीतिक असंतुलन बढ़ेगा.
❗ तो बहिष्कार क्यों?
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यदि विपक्षी दल चुनाव बहिष्कार करते हैं, तो चुनाव वैध और संवैधानिक रूप से मान्य रहेंगे, लेकिन उनकी राजनीतिक वैधता, नैतिक साख और लोकतांत्रिक स्वीकार्यता पर गंभीर प्रश्नचिह्न तो खड़े हो सकते हैं और यह बहिष्कार
लोकतंत्र के लिए एक चेतावनी की तरह तो होगा पर यह स्थायी समाधान नहीं है। लोकतंत्र की मजबूती चुनाव में भाग लेने और संविधान सम्मत संघर्ष करने में है — न कि मैदान छोड़ देने में।
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