BPSC में सदफ की सफलता कैसे मौन क्रांति की नजीर है
BPSC की संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा में कोई एक दर्जन मुस्लिम लड़कियों ने कामयाबी हासिल की है. मुसलमान यानी ऐसा समाज जिसके माथे पर लड़कियों की शिक्षा के प्रति लापरवाही का कलंक हमेशा रहा है. उस समाज में अब परिवर्तन की जोरदार आहट सुनी जा रही है.
लेकिन सदफ आलम की सफलता तो अपने आप में मिसाल है. बल्कि यूं कहें कि सदफ मुसलमानों के जिस सामाजिक पृष्ठभूमि से आती हैं, उस समाज में अगर लड़ियां प्रतिष्ठित प्रतियोगी परीक्षा में कामयाब होने लगें तो इसे मौन क्रांति ही कह सकते हैं.
दलितों से भी ज्यादा वंचित है धुनिया समाज
सदफ आलम की सफलता पर राष्ट्रीय जनता दल के कांटी विधायक इसराइल मंसूरी कहते हैं कि सदफ की सफलता मात्र एक मंसूरी समाज की बच्ची की सफलता नहीं, बल्कि उनकी कामयाबी हजारों अतिपिछड़े मुसलमान लड़कियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है. सदफ ने यह कामयाबी ऐसे हालात के बावजूद हासिल की है जहां पढ़ने-लिखने का माहौल काफी कम है.
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ध्यान देने की बात है कि विभिन्न आयोगों की रिपोर्ट्स के अनुसार मंसूरी (धुनिया) समाज अनुसूचित जातियों से भी ज्यादा पिछड़ा है.
सदफ के पिता मंसूर आलम मंसूरी रेडिमेड कपड़े के दुकानदार हैं. मां जमीला खातून गृहिणी हैं.
गौरतलब है कि सदफ आलम मुसलमानों के अत्यंत पिछड़े वर्ग मंसूरी ( धुनिया) बिरादरी से आती हैं. मंसूरी बिरादरी मुसलमानों की सबसे संसाधनहीन व वंचित समाज है. ऐसे में सदफ का बीपीएससी में सफल होना एक प्रेरणादायी मिसाल है.
कुछ ऐसी मुस्लिम लड़कियां भी हैं जिन्होंने शादनादर कामयाबी के साथ बेहतरीन रैंक भी हासिल किया है. आसमा खातून 27वें रैंक पर हैं और उन्हें प्रशासनिक सेवा के लिए चयनित किया गया है. जबकि रजिया सुलताना को चालीसवी रैंक मिली है.
सदफ का चयन रेवेन्यू अफसर के रूप में हुआ है. सदफ की सफलता के बाद राजद विधायक इसराइल मंसूरी उन्हें मुबारकबाद देने पहुंचे. इस अवसर पर इसराइल मंसूरी ने कहा सदफ आलम ने बीपीएससी परीक्षा उत्तीर्ण कर समाज और गांव का नाम रोशन किया है. इस मौके पर लोजपा नेता जिला पार्षद कुमोद पासवान मो नबी मंसूरी बिरजू ठाकुर सुभान मंसूरी भरत राय सहित सैकड़ों लोग मौजूद थे.