केंद्र की मोदी सरकार ने कल सोमवार को सीएए लागू करने की घोषणा की और आज मंगलवार को वामपंथी युवा संगठन DYFI ने कानून की नियमावली के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। सीपीएम से जुड़े युवा संगठन ने अपनी अपील में कहा है कि सीएए देश के संविधान तथा संविधान में उल्लेखित धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के खिलाफ है। संगठन ने कहा कि 2019 में सीएए कानून पारित किया गया। यह देश का ऐसा पहला कानून है जो धर्म के आधार पर नागरिकों को अधिकार देता है। मालूम हो कि इस कानून के तहत सिर्फ तीन पड़ोसी देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों को भारत में नागरिकाता का अधिकार देता है। केवल हिंदुओं, सिखों, ईसाइयों, बौद्धों को अधिकार देता है।
केरल में सक्रिय इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने भी ऐसी ही याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की है। लीग ने कानून पर रोक लगाने की मांग की है। याचिका में नागरिकता संशोधन कानून 2019 के प्रावधानों को देश में लागू करने पर रोक लगाने की मांग की गई है। लीग ने कहा कि नागरिकता कानून के तहत कुछ धर्मों के लोगों को ही नागरिकता दी जाएगी, जो संविधान के खिलाफ है। लीग ने कहा कि वह शरणार्थियों को नागरिकता देने के खिलाफ नहीं है, लेकिन उनका विरोध इसमें मुस्लिम धर्म के लोगों को बाहर रखने को लेकर है। यह धर्म के आधार पर भेदभाव को बढ़ावा देगा।
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केरल के ही कांग्रेस के सांसद शशि थरूर ने भी मीडिया से बात करते हुए यही सवाल उठाया है कि कोई ऐसा कानून संविधान के खिलाफ है, जो धर्म के आधार पर भेदभाव करता है। उन्होंने सीएए को संविधान के खिलाफ बताया है।
उधर असम में 16 विपक्षी दलों ने सीएए लागू करने खिलाफ मंगलवार को बंद बुलाया है। राज्य की भाजपा सरकार ने सभी विपक्षी दलों को नोटिस जारी करके इस विरोध को गैरकानूनी बताया है। याद रहे 2019 में भी सबसे पहले सीएए कानून का विरोध असम से ही शुरू हुआ था। असम में विदेशी नागरिकता का सवाल बहुत दिनों से उलझा हुआ है। कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा को बंगाल में कई सीटों पर लाभ मिल सकता है।