बेचारे चंपई सोरेन! भाजपा में शामिल होने के लिए दिल्ली गए, लेकिन कोई बड़ा नेता मिला तक नहीं। दरअसल योजना यह थी कि चंपई अपने साथ पांच-छह विधायक तोड़ लेंगे और उन्हें झारखंड का शिंदे बनाया जाएगा। लेकिन एक भी विधायक तोड़ने में वे नाकाम रहे। अब वे रांची लौट गए हैं। कहा कि वे अपनी अगल पार्टी बनाएंगे। इसे भाजपा का प्लान बी कहा जा रहा है। अब प्लान यह है कि चंपई सोरेन अपनी अलग पार्टी बना कर झारखंड में आदिवासी वोटों का बंटवारा करें। अगर वे इसमें कामयाब होंगे, तो भाजपा की जीत की राह आसान हो जाएगी। लगता है भाजपा उन्हें कांग्रेस के गुलाम नबी की तरह काम में लगाना चाहती है, लेकिन गुलाम नबी लोकसभा चुनाव में भाजपा की मदद नहीं कर पाए, अब देखना है कि वे विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत की राह आसान कर पाते हैं या नहीं।
भाजपा के कुछ आजमाए हुए नुस्खे हैं। पहले वह पार्टी तोड़ने का प्रयास करती है। अगर वह इसमें सफल नहीं हुई, तो उस नेता को अलग पार्टी बना कर सभी सीटों पर चुनाव लड़ने को कहती है। इसमें वह कई बार सफल रही है, तो कई बार असफल भी रही है। गुलाम नबी आजाद का प्रयोग अब तक असफल साबित हुआ है। उन्होंने डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी बनाई। राहुल गांधी तथा सोनिया गांधी के खिलाफ खूब आग उगला। उस समय तो कांग्रेस को जरूर नुकसान हुआ, लेकिन अपने मकसद में आजाद कामयाब नहीं रहे। लोकसभा चुनाव में वे घाटी की तीनों सीटों पर लड़े, लेकिन वे तीनों लोकसभा क्षेत्र में 80 हजार ही वोट ला सके।
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अब झारखंड में चंपई सोरेन अलग पार्टी बनाएंगे। नाम शायद झारखंड मुक्ति मोर्चा से मिलता-जुलता ही रखें। चुनाव चिह्न भी उसी तरह का हासिल करने की कोशिश करें, लेकिन वे क्या आदिवासी वोटों में विभाजन पैदा कर पाएंगे। फिलहाल तो ऐसा नहीं लगता।