क्या दोनों पासवानों में एक को राजद के साथ जाना पड़ेगा
क्या दोनों पासवानों में एक को राजद के साथ जाना पड़ेगा। सीटों के बंटवारे में फंसा एनडीए। चिराग को छह सीट चाहिए, तो पारस को भी जीती हुई चार सीटें चाहिए।
बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं। एनडीए के घटक दलों जदयू, रालोजपा, लोजपा, हम और रालोजद से पूछिए तो सभी यही कहते हैं कि भाजपा ने जो हमसे वादा किया है, उतनी सीटें मिलने की उम्मीद है। जदयू पिछली बार 17 सीटों पर लड़ा था, चिराग पासवान को छह सीटें मिली थीं, लेकिन चार सांसद उनके चाचा पशुपति पारस के साथ हैं। चिराग का दावा है कि उन्हें छह सीटें चाहिए क्योंकि उनकी जाति का मतदाता उनके साथ है। चाचा पारस का दावा है कि जीते हुए चार सांसद उनके साथ हैं। कोई भी समझौते का बुनियादी और पहला आधार यही होता है कि जिसकी जीती हुई सीट है, वह उसे दी जाती है। इसके बाद रालोजद के उपेंद्र कुशवाहा के नेता भी कह रहे हैं कि भाजपा ने तीन सीट देने का वादा किया है। हम को एक सीट मिल सकती है। इस तरह कुल सीटें हो जाती हैं 48, जबकि राज्य में लोकसभा की 40 सीटें ही हैं। जाहिर है, वादे या उम्मीद पूरी नहीं हो सकती।
इसीलिए राजनीतिक गलियारे में बार-बार सवाल किया जा रहा है कि क्या चिराग पासवान एनडीए के साथ रहेंगे या तेजस्वी के साथ जाएंगे। इधर इंडिया गठबंधन में सीटों की कमी नहीं है। चिराग अगर तेजस्वी यादव के साथ गए, तो उन्हें मनचाही सीटें मिल सकती हैं। अगर चिराग पासवान को भाजपा किसी तरह एडजस्ट करती है, तो जाहिर है चाचा पारस के साथ के सांसदों का टिकट कटेगा। तब चाचा पारस के लिए अपनी पार्टी बचाना मुश्किल हो सकता है। उनके पास भले ही पासवान मतदाताओं का कम हिस्सा हो, लेकिन उनके पास जीते हुए सांसद हैं, जो अकेले चुनाव नहीं जीत सकते, मगर किसी को हरा जरूर सकते हैं। गुरुवार को पारस अपने चार सांसदों के साथ अमित शाह से मिले हैं और अपना दावा पेश किया है। ऐसे में यह भी माना जा रहा है कि अगर उन्हें चार सीटें नहीं दी गईं, तो वे तेजस्वी यादव के साथ जा सकते हैं।
जीतनराम मांझी की पार्टी हम भी आश्वस्त नहीं है। उसे एक सीट चाहिए। मांझी चाहेंगे कि उन्हें गया की सीट मिले। चूंकि यहीं उनका सबसे ज्यादा आधार है। वहीं गया सीट जदयू के कब्जे में है। क्या जदयू वह अपनी जीती हुई सीट मांझी के लिए छोड़ेगा। इस पर कम ही भरोसा किया जा रहा है। इस तरह एनडीए में सीटों को लेकर भारी कशमकश है। खींचतान है।
उपेंद्र कुशवाहा और मांझी को मनाया जा सकता है, लेकिन चिराग पासवान और पशुपति पारस के लिए जीवन-मरण का प्रश्न है। ऐसे में राजनीतिक अटकलों का दौर चल रहा है कि दोनों में से किसी एक को राजद के साथ जाना ही पड़ेगा।
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