देखिए दैनिक भास्कर की जहरीली पत्रकारिता, रहिए सावधान
यूपी प्रशासन की देखरेख में राजनीतिक कार्यकर्ता का घर पुलिस ने बुलडोर से ढाह दिया। दैनिक भास्कर ने इस खबर को इस तरह जहर मिला कर पाठकों के सामने परोसा।
पैगंबर मोहम्मद साहब पर अपमानजनक टिप्पणी करने के खिलाफ पिछले शुक्रवार को देश के अनेक हिस्सों में प्रदर्शन हुए। यूपी में ऐसे ही प्रदर्शन के बाद एक राजनीतिक कार्यकर्ता मोहम्मद जावेद और उनकी बेटी जेएनयू की आफरीन का घर ढाह दिया गया। दैनिक भास्कर ने इस कबर की हेडिंग लगाई- हिंसा के सरगना के घर बुलडोर चला। दैनिक भास्कर ने राजनीतिक कार्यकर्ता को हिंसा का सरगना कैसे लिख दिया? क्या कोर्ट ने उन्हें हिंसा के लिए दोषी करार दे दिया है?
यह खबर अंग्रेजी अखबारों के भी पहले पन्ने पर है। इंडियन एक्सप्रेस ने मोहम्मद जावेद और आफरीन के लिए एक्टिविस्ट शब्द का प्रयोग किया है, जिसका अर्थ होता है कार्यकर्ता। इसी अंग्रेजी अखबार ने इसी खबर के साथ एक और खबर दी है, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इस प्रकार किसी का घर ढाह देना पूरी तरह गैर कानूनी है। न्यायाधीश के तर्क जरूर पढ़िए।
दैनिक भास्कर ने मीडिया एथिक्स को ताक पर रख कर एक व्यक्ति को पहले ही सरगना घोषित कर दिया, जिसका उसे कोई अधिकार नहीं है। क्या वे सत्ता पक्ष के किसी व्यक्ति के लिए सरगना शब्द का प्रयोग कर सकते हैं? क्या यह किसी व्यक्ति के नागरिक अधिकारों का हनन नहीं है? किसी व्यक्ति और प्रकारांतर से किसी समुदाय के खिलाफ दुर्भावना फैलाना नहीं है?
अखबार का काम होता है सत्ता पर निगरानी रखना, उसकी गलतियों पर सवाल उठाना, न कि सत्ता जो कहे, उसे हू-ब-हू छाप देना। इस मामले में इंडियन एक्सप्रेस, द टेेलिग्राफ और टाइम्स ऑफ इंडिया ने जहां संयमित ढंग से खबर दी है, वहीं दैनिक भास्कर और कुछ अन्य हिंदी अखबार, अखबार की नैतिकता छोड़ चुके लगते हैं। इसीलिए हिंदी के पाठकों को सचेत रहने की जरूरत है, वर्ना ऐसे अखबार हिंदी पाठकों के विवेक को मारने पर उतारू हैं। हिंदी पाठकों को विवेकशील नागरिक बनाने के बदले वे विवेकहीन भीड़ में तब्दील करना चाहते हैं।
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