देशभर के कुर्मियों में हलचल, क्यों कर रहे 23 जून का इंतजार

देशभर के कुर्मियों में हलचल, क्यों कर रहे 23 जून का इंतजार। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात तक हलचल। सबसे ज्यादा बिहार और यूपी के कुर्मी उत्सुक। भाजपा परेशान।

कुमार अनिल

23 जून को पटना में देश के भाजपा विरोधी दलों की होनेवाली बैठक पर सबकी नजर है। भाजपा के तमाम नेता इस बैठक का मजाक उड़ा रहे हैं। एक-एक दिन में भाजपा के कई-कई नेता बैठक को अभी से फेल बता रहे हैं। 23 की बैठक पर राजनीतिक दलों, राजनीतिक विश्लेषकों की नजर तो है ही, कुर्मियों में जबरदस्त हलचल है। यह हलचल सिर्फ बिहारर के कुर्मियों में नहीं है, बल्कि देशभर के कुर्मियों में है। बिहार के अलावा सबसे ज्यादा यूपी के कुर्मी 23 जून को विपक्षी दलों की बैठक को लेकर उत्सुक हैं।

कुर्मी इस बात को लेकर उत्सुक हैं कि क्या राहुल गांधी, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, हेमंत सोरेन सहित तमाम नेता बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को विपक्षी एकता का संयोजक बनाएंगे? अगर भाजपा विरोधी दलों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को संयोजक बना दिया, तो देशभर के कुर्मी नीतीश कुमार के पीछे खड़े हो जाएंगे। तब मैसेज यह जाएगा कि भविष्य में नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बन सकते हैं।

अगर विपक्षी एकता के लिए संयोजक की जिम्मेदारी नीतीश को दी जाती है, तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को होगा और वह भी यूपी में। यूपी की सियासत में आज कुर्मी भाजपा के साथ हैं, लेकिन वे उस तरह संघ और भाजपा के हिंदुत्व के साथ नहीं हैं, जिस तरह सवर्ण जातियां हैं। अगर विपक्षी दल नीतीश कुमार को आगे करते हैं, तो कुर्मी का भाजपा से अलग होना तय है। अगर 75-80 प्रतिशत कुर्मी भी भाजपा से टूट कर अलग होते हैं, तो इससे भाजपा को भारी नुकसान होगा और विपक्ष को फायदा मिलेगा। इसका सीधा लाभ यूपी में अखिलेश यादव को होगा। झारखंड, बिहार में महागठबंधन को होगा तथा छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और गुजरात में कांग्रेस को लाभ होगा।

यह तो तय है कि 23 जून को विपक्षी दल अपने प्रधानमंत्री उम्मीदवार की घोषणा नहीं करेंगे। उसके लिए यह समय उचित नहीं है, पर विपक्षी दलों की एकता के लिए आपस में किसी को संयोजक बना सकते हैं। ऐसा करके विपक्षी दल भाजपा के एनडीए के बरक्श अपना विकल्प दे सकते हैं। अमित शाह लगातार एनडीए के विस्तार का प्रयास कर रहे हैं। उसी प्रयास में उन्होंने जीतनराम मांझी पर डोरे डाले। नीतीश विपक्ष के संयोजक बनते हैं, तो देश में दो विकल्प सामने आ जाएंगे।

विपक्षी एकता में अखिलेश यादव और ममता बनर्जी को सहमत करना सबसे टेढ़ी खीर है। नीतीश कुमार के लिए भी यह चुनौती है कि वे इन दोनों नेताओं को किसी सतह पर एकजुट करें। ऐसा वे कर पाए, तो उनका कद राष्ट्रीय राजनीति में बहुत ऊंचा हो जाएगा। फिलहाल उनकी पहल पर सबका एक साथ बैठना भी कम महत्वपूर्ण नहीं है, इसलिए आज की तारीख में भी नीतीश का कद राष्ट्रीय राजनीति में बढ़ा है। इंतजार करिए 23 को क्या होता है।

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By Editor


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